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આત્માનઢ પ્રકાશ.
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आलमारीयां बनती इत्यादि बाबतोसे खुश होकर मुजे १२ वर्षतक इहां हुकम फरमायाथा तथा सर्व प्रकारकी मदद देनेको जैन एसोसियसन तरफ से पत्र भेजवायाथा.
रहनेका
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महाशयो - असली साधुत्वका दर्शन करनेको तथा धार्मिक चरचा वार्ता करनेar as तथा अक्तर आदिगाम नगरके राजाः महाराजा इनके पास हाजर होतेथे इतनाहि नहि वल्के पादरी प्रमुख मतांतरीय अनेक हिंड मुसलमन इनके पास वार्तालाप करने को आतेथे इस चर्चाकी गमत देखनेके वास्ते के कै दफे दोदो तीनतीन कोस लोक चले आतेथे ऐसीतो अद्भुत युक्तियोंसें यह महात्मा परास्त करतेये तथा सवालो के उत्तर देतेथेकी जीसको सुके लोक खुसखुस बनाये और अद्वारा दर्शके लोक इनोकी मी तारीफ करते थे आखीर पंजाब देशांतरंगत गुजरानवाला शेहेरमें इनोंने इसकानी दुनयाको बांके संवत् १९५२ जेष्ट शुकन सप्त अनीके रोज स्वर्गगमन कीया या मानसूर्य अस्त हो गया. तेही कमो हेरो तथा गामोमें हमताल पर गर और हाहाकार मच गया जैन वर्ग शोक सागर में रुब गया साधु साध्वी निराधार वन गये. इस विरहानलकी शांति के लिये अमदावाद मुंबई, बोदा, जावनगर, समाजा आदि गामोगाम समवसरण महोच्छव वाइ महोच्छव पूजा प्रजावना दान पुण्य होने लगे.
सुमित्रो - जैन कोम जब उदात होगई तब पंजाबी लोकोका तो पुछना ही क्या इनके उपरतो बाजारो उपकारथा हरदम वोह लोक महाराज के दर्शन तथा वचनामृतको पीना चाहते थे लेकिन दुर्देवसें अब मृगतृष्णावत् होगया तब दर्शन या जन लोकाने चंदा करके एक बमा जारी गुरुमंदिर अग्निसंस्कारको जगापर बनवाया उसमें दान साठ हजार रुपए काव्यय हुवा जीत का फोड इहां विद्यमान है उस गुरुधाराको देखनेके लिये तथा जीसमें पथरा महात्माओकी चरणपादुकाका दर्शनके लिये हजारों स्वपरमतके लोक है और अपनी विरह तृष्णा कुछ मिटाते है हाल इनोके पट्ट पर हमारे बजे गुरुनाइ श्री विजयकमसूरिजी विद्यमान है इनका निरुपण करके तथा धर्म कार्यनें इन महात्मासूरी राजाका अनुकरण करनेकी जलामण करके इस प्रसंगको खतम करता हूं.
B. 12
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