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________________ આત્માનન્દ પ્રકાશ, साथही दिक्षा लेनेको तत्पर हुवेहैं अपने मालकोभी इस प्रकार बांटदिया है कि एक १००० हजार रूपया अपने भत्रीजे लाला अमरनाथ गौरामलजीके पुत्रको देदिया और २१६ रूपया श्रीजिन मंदिर जैपुर और पंजाब और पुजारी वगेरहको दिया और दुकानादि धर्मार्थ अर्पण करदी तिसका तहरीरी कागज श्रीमान् लाला दोलतरामजी प्रसीडेंट आत्मानंद जैन सभा होश्यारपुरके नाम कर दियाहै और जो रुपया भेटादि वंदोरोंमें प्राप्त होवो आधा जैपुरको आत्मानंद जैनश्वेताम्बर पाठशाला को और आधा बनारसके विद्यार्थीयोंको सहायताको प्रदान करके महाराजश्रीके चोका सहारालियाहै जैपुर निवासी भाइयोंने इस उत्साहको देख जैपुरमेही दिक्षा उत्सबकी महाराज श्रीसे प्रार्थना करी और वो मन्जुर होनेपर अन्य नगरोंके भाईयोंको कुमकुम पत्रिका ऐं भेजी गई और फाल्गुन शुक्ल ६ सेही दिक्षा महोत्सव प्रारंभ करदिया लगातार पंद्रह दिन तक हरहमेश मंदिरजीमें पूना प्रभावनादि गायन होतेथे नोपद और वीस्थानकका मंडल रचा गयाथा मंदिर धर्मशाळा धजापताकाओसें सुशोभित थीं दिक्षा लेने वालोंको वरघोडे (जल्लूस) के साथ नगरमें किरानादि धर्मोनातिकी क्रिया होतीथी पंद्रहही दिनो में २७ सत्ताहिस बंदोरे निकाले गये ८०० आठसोह तक मनुष्योंकी भीड साथमें जैकारे बोलती रहतीथी और सब बंदरों में पेडे पतासे और नारयलोंकी प्रभावना होती रहतीथी और एक गौरजावाईकी तफसे स्वामी बत्सल्य भी बड़ी धूमके साथ किया गयाथा जो जैपुरमें एक महाश्यकी तर्फसे होनेका पहलाक्षी नजीरथा दिक्षाका एक दिन बाकी रह्याथा अर्थात चैत्र कृष्णा तीज को छटा औरभी पेहेले दिनोसें केइ गुनी चढचढ करथी कारणके जस दिन रथयात्राकी स्वारी जेपुरके चारों बाजारों में होती सायंकाल वापिस मंदिरजीमें आई, जिसकी शोभाही निराली थी. भगवतकी सवारीका हस्ती उपर अम्बारी सुन्हेरी अजब बहा
SR No.531071
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages22
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size1 MB
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