SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उन्नति न: खाने ।। २. ૨૦૯ ही उन्होंने धारा है और विद्या इनसे और ये विद्यासे कोसों भागते हैं और ताकत इन वेचारोंमें क्या और बहुतसे धर्मोंमें नहीं है इनको यदि धर्म चलानेमें मदद मिलती है तो उपदेशक और परिश्रमका ही सहारा है जिस ग्राममें किसी मजहबका जोर नहीं है लोग पढे लिखे नहीं हैं उन देहातोंमें ये विहार करते हैं और गायन गा गा कर और लोगोंको निजधर्ममें पाबंद करते हैं ये दूसरी बात है कि सरस्वतीपुत्र शादिसुखभंजन माहात्मा श्रीमत् बल्लभविजयजी आदिक उधर जा पहुंचे और उन लोगोंकी लगी पैंठ को जा जजाडे जनकी वंधी पौलको खोल दें पर तारीफ तो उनकी यही करनी चाहीये कि विद्या कुछ भी ना होनेपर भी देहातोंमें छोटे छोटे गामडोंमें, जहां २ कोई धर्मवाला भी नः पहुंचे ये जा जा कर अपनी पेंठ तो जमाते हैं क्यों कि इन्हें केवल दोही बातों का सहारा है. प्यारे मित्रो, कुछ उदाहरण नमुनेके मानिद आपको दिखाये शेष आपही समझ लीजये सारे लिखू इतनी पत्र में जगह नहीं है गौर कर लीजये सब उदाहरणोंमें जपदेशक और परिश्रम पहले नम्बर मौजूद है इसके वगेर किसीका काम नहीं चला साथमें विद्यादेवी और लक्षमी देवी भी लगी है पर हमारी जाति में पांचोंमेंसे एक भी बात पूरी नहीं हालांकि उन्नतिमें कमसे कम ३ तीन बातां तो हों पर मुकाबले में यहां १ एक भी पूरी नही तब कहीये उन्नति कहांसेहो. मित्रो, विचारनेका स्थान है कि जिस प्रकार भोजन करने में हाथकी आवश्यक्ता है तिजारतमें लक्षमीकी आवश्यक्ता है पक्षीयोंको उडनेमें पंख की आवश्यक्ता है चलने फिरनेमें हाथ पैरकी आवश्यक्ता है इसी प्रकार धर्म प्रचार में उपदेशकोंकी आव For Private And Personal Use Only
SR No.531069
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy