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આત્માનદ પ્રકાશ श्यक्ता है विना उपदेशकों के किसी धर्म ने किसी हालतभी उन्नति नही की, और नः कर सकेगा पर शोक इसी बातका है कि जिसकी पहले जरूरत है वो पीच्छ के वास्ते रख छोडते है जो पीच्छे करने के काम हैं उनपर पहले लक्ष दिया जाता है पर खेद इसी वातका है कि इधर कोई भी ध्यान नहीं देता जो काम निहायत जरूरी है जिस कार्यके वगेर जैन जाति रसातलको पहुंचती जाती है जिसके वगेर महान घोर होता जाताहै उधर किसीकाभी ध्यान नहीं है और जिस काम की कुच्छभी जरूरत नहीं है उधर लाखों रुपीयाका सत्यानाश करे डालते हैं ये नही सोचते कि यदि उपदेशक तैयार होजावेंगे तो आपलोग जितनी वर्षोंसे हाय तोवा करके आजतक नतीजा नहीं निकाल सकेहो उतना नतीजा१ वर्षमें उपदेशक निकालकर दिखा सक्ते हैं तो इधर क्यों नही ध्यान देतेहो आपको उपदेशकों का फायदा प्रत्यक्ष इसाईसमाज-आर्य समाजका प्रचार दि. खा रहा है तो नही मालूम फिर आपकी आंखें क्यों मिची जाती हैं जो इधर ध्यान नहीं देते.
प्यारे भाईयो, में एक दो सेठयों को नहीं बल्के तमाम जैन जाति से दरख्वास्त करताहूं कि सब कामोंकी बजाय इधर ध्यानदो तो भविष्यमें कुच्छ कल्याणहो. ___ यदि उपदेशक मंडल कायम हो जावेगा तो एकदम सुधार होजायेगा क्योंकि उनका कामतो ग्रामों ग्राम भ्रमण करना जैन जातिके सुधारेके काम सौचना और उपदेश करना ही होगा आप लोग उनके मुकाबलेमें क्या कर सक्ते हो यदि बहुत जोर मारा तो कौनफिरन्स या प्रान्ति क कौनफिरन्स कर डाली उसमें ३ दिन दिमागी जोर खर्च किया फिर ३५७दिन कौन दिमाग लगावेगा तुम लोग तो घर पर जातेही निन्ता के फेर में पड जावोगे फिर कॉमका फिकर कौन करेगा-इस वीस हजार
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