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આભા પ્રકાશ
कोई शंका नही रहती. उदाहरणमें पुलमानांहीही देखीये हिदुस्तान में जिस समय इन्होंने स्वधर्म केलाया ताकत और उपदेशक उअम-द्रव्यकी मुख्यला था क्योंकि मंदिरीको नाकर मसजिदें बनाना मांस मदिरा खिलाकर जबरन सुस्लमां करके जो धर्म बाया उसीमें घटालो कि उपदेशक तो येही ओली प्रेरणा करते थे द्रव्यथाही जिसको खर्च करके रोह यहाँ आये और सोमनाथादि तक पहुंचे
और भारत भ्रमण करते है और उधम तोड फोड करना मं. दिरोंका नकशा बिगाड मजिद बनाना धर्म भ्रष्टादि करतेये
और ताकात तो पहले ही नम्बर काम में लातही थे जिससे दूसरे लोगोंका बस नही चलताथा.
शंकरस्वामीका इतिहाल पहलो बौद्धोंको वयसे लगाकर वृद्ध तक कत्ल करना के निकाल स्वर्गकी उमति की उसमें भी पहले उपदेशक और परिश्रम (उच) काम आया बादमें ताकतसे तो उन्हें निकालही बाहर किया,
ईसाई धर्मको प्रतक्ष ही देखीये उन्होंने अपने धर्मको भारतमें जो फेलाया और कैला रहे हैं उन्होमी ३ बस्टूबों का सहारा लिया द्रव्य १ उपदेशक २ उधम ३ कुच्छ विद्या और ताकातका भी सहाराही है पर मलाइ रूपसे नजर नही आता, आर्यसमाज दयानंदी मजहब कोही देखीये उसने देखते देखते कितनी तरक्की हासिल की है उन्होंने भी उपदेशक १ परिश्रम २ विद्याकी सहायता ली, जिसकी बदौलत नगर २ में समाए जारी की और लाखोंकी तादाद में पहुंच गये थे. साता परताव उपदेशकोंकाही है, ढूंढक समाजहीको देखो इन्हीं ले दोही बातोसे काम चलाया क्योंकि लक्षमी तो इन्होंसे खर्चही ली होती जिस वाहते तो यह मजहब
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