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________________ . भास्कर __इसके लिपिकर्ता काशीनिवासी बटुक प्रसाद नाम के एक कायस्थ हैं। लिपिकाल सं० १९७८ है। इस प्रति के अतिरिक्त भी “भवन” में एक अत्यन्त प्राचीन प्रति नम्बर वाली है। खेद के साथ यह कहना पड़ता है कि ये दोनों प्रतियां अशुद्धियों से भरी हुई हैं। बल्कि इसी प्राचीन प्रति से प्रस्तुत प्रति उतारी गयी है। इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके कर्ता अजित ब्रह्मचारी देवेन्द्रकीति जी के शिष्य थे। इनके पिता का नाम वीरसिंह और माता का बीधा था। इनके वंश का नाम गोलङ्गार है। विद्यानन्दजी की आज्ञानुसार ही इन्होंने भृगुकच्छ (भरोच) नगर में इस प्रन्थ का प्रणयन किया है। प्रन्थ-रचनाकाल प्रशस्ति में नहीं दिया गया। पं० जुगलकिशोर जी की राय है कि यह अजित ब्रह्मचारी १६वीं शताब्दी में हुए हैं। (४) अन्य नं. २ विद्यानुवादांग (जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय) कर्ता (का मा०) विषय-प्रतिष्ठापाठ भाषा-संस्कृत लम्बाई-१४ इंच चौडाई ५॥ इंच मंगलाचरण लक्ष्मी दिशतु वो यस्य ज्ञानादर्श जगत्रयम्। . व्यदीपि स जिनः श्रीमान्नाभेया नौरिवाम्बुधौ ॥१॥ माङ्गल्यमुत्तमं जीयाच्छरण्यं यद्रजोहरम् । निरहस्यमरिनं तत्पश्चब्रह्मात्मकं महः ॥२॥ दोषसन्तापशमनीर्वाग्ज्योत्स्नाः जिनचन्द्रजाः।। वर्धयन्ति श्रुताम्भोधि स्वान्तं ध्वान्तं धुनोतु नः ॥३॥ मोक्षलक्ष्म्या कृतं कण्ठहारनायकरत्नताम् ।। रनवयं नमः सम्यक् हरज्ञानाचारलक्षणम् ।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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