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________________ ४ भास्कर वंशः कुलं यस्य तम् । अप्रमाणसत्वम् अप्रमाणाः प्रमाणरहिताः सत्वाः प्राणिनः यस्मिन् तं पक्षे बहुलसामर्थ्यम्। अत्युन्नतशालिनीम् अत्युन्नत्या शालिनीम् । सम्पूर्णस्थितिं व्यवस्थिति प मर्यादां । दधानं धरन्तं । रुचिराकृतिं रुचिरा प्राकृतिर्यस्य तं । एकं । स्वसमानं स्वस्य समानं । नगं पर्वतं । आलुलोके ददर्श लोकृञ् दर्शने लिट् । श्लेषोपमा । समातिसूचक अन्तिम पंक्ति : इति वीरनन्दिकृतावुद्याङ्क चन्द्रप्रभचरिते महाकाव्ये तद्व्याख्याने चं विद्वन्मनोवल्लभाख्ये अष्टादशः सर्गः समाप्तः । चन्द्रप्रभचरित काव्य की भोतक दो टीकायें उपलब्ध हैं। एक चारुकीर्तिकृत और दूसरी प्रभाचन्द्र भट्टारककृत । प्रभाचन्द्र भट्टारक का समय वि० सं० १३१६ है और arentर्त्ति का समय शकाब्द १३२१ के बाद का ज्ञात होता है। चारुकीर्त्तिजी का यह समय तभी सम्भवपरक कहा जा सकता है, जबकि यही पार्श्वाभ्युदय के भी टीकाकार हों । चारुकीर्त्तिकृत चन्द्रप्रभकाव्य की टोका की श्लोकसंख्या छः हजार मानी गयी है । भवन की इस प्रति में भी लगभग छः हजार श्लोकसंख्या अनुमित होती है। सकता है कि यह चारुकीति जी की ही टीका है। अतः यह कहा जा ज्ञात होता है कि टीकाकार ने इस टीका में व्याकरण, अलङ्कार एवं केाषादि की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया है । पार्श्वाभ्युदय के टीकाकार चारुकीर्त्ति जी की निम्नलिखित कृतियों का पता लगता है: (१) चन्द्र प्रभ काव्य की टीका । श्लोक संख्या - ६००० (२) भादिपुराण ३००० (३) यशोधरचरित (४) नेमिनिर्वाणकाव्यटीका (५) पार्श्वाभ्युदयकाव्यटीका (६) गीतवीतराग 000
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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