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________________ बाहुबलि-शतक [ रचयिता और प्रकाशक महेशचन्द्र प्रसाद, एम० ए०, देवाश्रम धारा ११३५, कागज और - छपाई अच्छे हैं, बाहुबलिस्वामी का सुन्दर चित्र भी है, मूल्य सिर्फ दो पाना ] मैसूर राज्य के हासन जिले में स्थित श्रवणबेलगोल जैनियों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। वहां के विन्ध्यगिरि पर खनासन विराजमान बाहुबलिस्वामी की मूर्ति अपनी विशालता और कारीगरी के लिये भारत के इतिहास में प्रसिद्ध है। इसके कलाकौशल की प्रशंसा बड़े बड़े विद्वानों और गुणग्राहकां ने की है। लेखक को इस स्थान के दर्शन करने का सुअवसर श्रीमान् पक्रश्वरकुमार जो, पारा, के साथ मिला। मूर्ति के दर्शन से प्रभावित होकर उन्होंने प्रस्तुत काव्य को रचा है, तथा कृतज्ञता-पूर्वक उसे अपने उपकारी को ही समर्पित किया है। प्रस्तुत काव्य बाहुबलिस्वामी की उक्त मूर्ति की १०५ दोहों में स्तुति है। पहले पांच दोहों में मंगलाचरण के पश्चात् कवि ने क्रमशः श्रवणबेलगोला, मैसूर, उक्त मूर्ति, उसकी स्थिति, उसके रुप और फिर उसके शिर, केश, मुख, भाल, भृकुटी आदि प्रत्येक अङ्गकी शोभा का सुन्दर वर्णन किया है। शैली प्राचीन है। अर्थ-सौन्दर्य के साथ शब्दालंकार की अोर कवि का ध्यान विशेष रहा है। इसी से स्तुति में स्थान स्थान पर कुछ जटिलता आगई है। शब्दों के खेल के कुछ उदाहरण देखिये :मूर्ति के वर्णन में कवि कहते हैं: जग ते पाहत होत जब, जग में पाहुन हात । जग ते पाहन होत जब, जग में पाहन हात ॥१०॥ मुख की हास्य मुद्रा का वर्णन है : हास नहों, उपहास यह, कली बली का मानु । कली कलेजे को कली, तोड़ी कली समानु ॥४०॥ इनका अर्थ समझने के लिये थोड़ी देर सिर खुजलाना पड़ता है। पर कहीं कहीं घेसा ही शब्द-सौन्दर्य अर्थ की सुगमता के साथ भी मिलता है जैसे नहीं धरा पर कछु धरा, भरा क्लेस निहसेस। धीर धराधर पै खड़े, यह देत उपदेस ॥४०॥
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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