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गत प्रथम एवं द्वितीय किरणों में प्रकाशित अपने लेखों के विषय में कुछ विशेष वक्तव्य
(ले०-श्रीयुत पं० के० भुजबली शास्त्री) भास्कर की रम किरण में प्रकाशित "नीतिवाक्यामृत और कन्नड़ कवि नेमिनाथ"
""तथा श्य किरण में प्रकाशित "विदुषी पम्पादेवी" इन लेखों के बारे में मुझे इधर जो विशेष बातें मालूम हुई हैं उन्हें मैं नीचे उद्धृत किये देता है, जिससे ऐतिहासिक विक्ष-पाठकों की भ्रम निवृत्ति हो। बल्कि इन विशेष बातों का संकेत मुझे सुहद्वर विद्वान् महामहोपाध्याय, रायबहादुर नरसिंहाचार्य, एम० ए० ने किया है, अतः मैं आपका अनुगृहीत हूँ:
(१) ई० सन् ११४८ में समाधिशतक की टीका लिखनेवाले मेघचन्द्र और ६० सन् १११५ में स्वर्गस्थ मेघचन्द्र ये दोनों भिन्न भिन्न व्यक्ति हैं। एक दूसरे का पारस्परिक कोई सम्बन्ध नहीं है। मैं ने जो इन्हें अभिन्न समझ रक्खा था वह पंडित नाथ राम प्रेमी जी द्वारा लिखित 'अाचारसार' के "निवेदन" के आधार पर। इसी प्रकार "शुभचन्द्र" को मैंने जो मेघचन्द्र को शिष्य लिखा , है इसका आधार भी प्रेमी जी का वही उक्त "निवेदन" है। वास्तव में शुभचन्द्र मेघचन्द्र के शिष्य नहीं हैं। साथ ही साथ शुभचन्द्र
और मेघचन्द्र के शिष्य प्रभावन्द्र का स्वर्गागहण-समय श्रवणबेलगोल के ११७वें एवं १४०३ . शिलालेखों से क्रमशः ई• सन् ११२३ और ई. सन् १९४५ प्रमाणित होता है।
(२) उक्त माननीय विद्वान् के संकेत करने एवं प्रन्थान्त के गद्य के पुनरवलोकन से मुझे भी विश्वास हो गया है कि नेमिनाथ वीरनन्दी (मेघचन्द्र के शिष्य) का ही शिष्य है। किन्तु मेरे उक्त लेख में यह बात शब्द-प्रतिपाय नहीं थी। क्योंकि वहाँ मैंने लिखा है कि "इन्होंने (नेमिनाथ ने) ग्रन्थ के आदि और अन्त में मेघचन्द्र विद्यदेव एवं वीरनन्दी सिद्धान्त-चक्रवर्ती को बड़ी श्रद्धा से स्मरण किया है।"
(३) नेमिनाथ के द्वारा स्मरण किये हुए माघनन्दी भट्टारक नयकीर्ति के शिष्य हैं न कि भानुकीर्ति के। (श्रवणबेलगोल के २०६६, पंक्ति १३०-१) साथ ही साथ शास्त्रसार के कर्ता माघनन्दी कुमुदचन्द्र के शिष्य हैं, इनका काल लगभग ई० सन् १२५२ है। (श्रवणबेलगोल ३४३)
(१) दूसरी किरण में प्रकाशित “विदुषो पम्पादेवी" यह लेख ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी के द्वारा संपादित “मद्रास व मेसूर प्रान्त के प्राचीन जैन-स्मारक" के आधार पर लिखा