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भास्कर
[ भाग २
को गुलामी का पट्टा उतार कर फेंक दिया था और वह एक स्वाधीन शासक बन बैठा था ? पश्चिमी चालुक्यों का तत्कालोन (शक सं० ६३०-६३२ ) इतिहास उसके संपूर्ण इस साहसी कर्म का रहस्य उघाड़ देता है। उससे प्रकट है कि सन् ६३० में राजराज केशरीवर्मन् ने सत्याश्रय को परास्त कर दिया था। किन्तु इतने पर ही इस युद्ध का अन्त न हो गया। पराजित सत्याश्रय पर राजकेशरीवर्मन् के उत्तराधिकारी राजेन्द्र चालदेव ने भी धावा बोल दिया। इस लड़ाई में उसने सत्याश्रय के राज्य को तबाह कर दिया था। बच्चों, अबलाओं और ब्राह्मणों को तलवार के घाट उतारा था। इतने पर भी सत्याश्रय ने चोलों को सन् १००७ (शक सं०९३० ) में रणक्षेत्र से भगा मारा था। इस प्रकार यद्यपि सत्याश्रय ने अपने देश को शत्रु ओं से रहित कर दिया था, परन्तु वह अधिक समय तक न जिया जो अपने राज्य की नींव सुदृढ़ कर पाता। और उसके उत्तराधिकारी भी अयोग्य निकले। इस परिस्थिति से रट्टराज ने लाभ उठाया और वह स्वाधीन शासक बन गया। स्वाधीनता भला किसे प्रिय नहीं है ? अब वह 'महामण्डलीक' कहलाने लगा था, उनका सन्धिविग्रहिक मंत्री देवपाल अब 'महाश्री' की उपाधि से विभूषित हो गया था। अतः रट्टराज का राज्याभ्युदय भी स्पष्ट है।
रट्टराज की राजधानी बलिपट्टन नामक महादुर्ग था; जिसको स्थापना उसके पूर्वज धम्मियर ने की थी। वह समुद्रतट पर कहीं थी । उपरान्त इस पर उत्तरकोण के सिलार बंशी राजाओं का अधिकार हो गया था। प्रस्तुत लेख का पूर्वाश इस प्रकार है :
१ "स्वस्ति (I) श्रीर =अपि विपुलआप्ताद्-अभिम२ त-देवता–प्रसादेन । संसार-सा३ र-धर्म-क्रियावतां प्राणिनां स४ ततम् ॥ आसीद-विद्याधर-आधीसो ५ गरुत्मद-दत्तजीवितः (1) जीमूतकेतोः स६ त्सुनो नाम्ना जीमूतवाहनः ॥ ततः ७ सिलार-बंशोभूत सिंहल-क्षमाभृतां वरः ८ - प्रभूत-भूत-सौभाग्य-भाग्यवांस-तत्र चो& जितः॥ नाना सणफुल्लः ख्यातः कृ१० -ष्णराज-प्रसादवान् । समुद्र तीर-सह्या११ -तदेश-संसाधको नृपः॥ तत्सुतो धर्म१२ -व-आभूनन्नाम्ना धम्मियरः परः॥ प्रता१३ -पवान्न्महादुर्ग-बलिपट्टन कृत् कृती १४ । तस्माद-ऐयपराजोन्भूद्र-विजिगीषु१५ --गुणान्वितः। स्नातर= चन्द्रपुर-आसन्न-ना