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... . भास्कर
[ भाग २
इसके अलावा भगवती आदि सूत्र और उन पर भिन्न भिन्न भाष्य टीकाओं में श्रीऋषभदेव का चरित्र आता होगा परन्तु अपनी आँखों से देखे बिना नियत स्थानादि मैं कैसे लिख सकता हूं।
आगमों से भिन्न ग्रन्थ भागों से भिन्न ग्रन्थों के मैं पाँच भाग करता हूं, जिनमें भगवान् श्रीऋषभदेव के नामादि का उक्लेख आता है।
किसी विषय के प्रन्थ में मंगलाचरण के तौर पर श्रीऋषभदेव का नाम तथा स्तुति हो । जैसे श्रीहेमचन्द्राचार्य के मुख्य शिष्य महान् नाट्यशास्त्रज्ञ श्रीरामचन्द्र-रचित 'सत्यहरिश्चचन्द्र नाटक' परम श्रावक वाग्भट्टकृत 'वाग्भटालंकार' 'विजयशप्रस्त्यादि।
२ जो ऋषभदेव-विषयक स्त्रोत्र स्तुति तथा महात्म्य वाले हों जैसे :- मानतुंग सूरिकृत 'भक्तामर', महाकवि धनपाल की 'ऋषभपंचाशिका' इत्यादि ।
३ जो आगम शैली के ग्रन्थ या टीकाय हो, जैसे 'प्रवचनसारोद्धार', कल्पसूत्रादि की सभी टीकाएं विशेषावश्यभाष्य आदि।
४ जो रस और अतिशयोक्ति उपमा प्रभृति अलंकारादि काव्य गुणों से भरी हुई वर्णनशैली के काव्य हों, जैसे 'जैनकुमारसम्भव' नाभेयद्विसन्धान आदि ।
५ जो ग्रन्थ ऋषभदेव-विषयक छोटी से लेकर बड़ी ऐतिहासिक बातों को रसमयी भाषा में . प्रकट करने वाले हों। जैसे त्रिषष्टिशलाका-पुरुष-चरित्र आदि।
इन पाँच प्रकार के ग्रन्थों में से भगवान् की जीवनी लिखने के लिये आखीर के तीन प्रकार के ग्रन्थ ही विशेष उपयुक्त हो सकते हैं, इसी लिये इनके विषय में कुछ परिचय देना उचित होगा। इन ग्रन्थों की पृष्ठ विषयादि की सूची लेख की काया दीर्घ हो जाने के भय से मैं नहीं दूंगा।
प्रवचनसारोद्धार प्रवचन यानी आगम उनका सार, यह ग्रन्थ आगम नहीं है परन्तु भिन्न भिन्न आगों में आने वाले भिन्न भिन्न द्वारों (विषयों) का इस ग्रन्थ में प्राकृत भाषा में संग्रह किया है। वारमी शताब्दी के श्रीनेमिचन्द्रसूरि ने इस ग्रन्थ को लिखा है । इसके ऊपर प्रौढ विद्वान् श्री सिद्धसेनसूरि ने संस्कृत में विस्तृत टीका लिखी है । प्रस्तुत टोकायुक्त यह ग्रन्थ श्रीयुन देवचंदलाल भाई जैन पुस्तकोद्धारफंड सरत से ई० सन् १९२२ में प्रकाशित हुआ है । इसमें चैत्यवन्दनादि २७६ द्वार (विषय-प्रकरण) है, जिसमें द्वार पृष्ठ नं. ८२ से लेकर सब तीर्थंकरों के आदि गणधर, आदि साध्वी वगैरों के नाम विषय (द्वार)नं० ३६ पृष्ट नं० १०० तक आते हैं।