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________________ १२६ भास्कर [ भांग २ है - ' विनय से बहुत पुण्य होता है और छोटे बड़े सभी प्रसन्न होते हैं । विनय से देवता पति का नाश कर देते हैं और दुष्ट भी शान्त हो जाते हैं । विनय से सब विद्यायें सिद्ध होती हैं, ग्रहों की पीड़ा रुक जाती है, लोक में प्रसिद्धि होती है, लक्ष्मी कभी साथ नहीं छोड़ती। विनयी मनुष्य का सब लोग आदर करते हैं और दुर्जन भी भाई बन जाता है । विनय से दान, शील, तप सहज ही सधते हैं और कोई शत्रु नहीं बनता । विनय से सब लोग वश में हो जाते हैं । विनय ही एक ऐसा कर्म है जिसका कभी कोई विरोध नहीं करता । विनय सब कल्याणों का करनेवाला, और नरकों की दुर्गति को टालनेवाला है। परोक्ष विनय का ही फल सुनो। द्रोणाचार्य का विनय एक भील ने किया था जिससे. प्रतिदिन धनुर्विद्या का अभ्यास करते करते उसे शब्द-वेधी बाणकला सिद्ध हो गई थी । " गुरु-उपासना का विषय इस संधि के सात कडवकों में समाप्त होकर आठवें कडवक से स्वाध्याय का उपदेश प्रारम्भ होता है। स्वाध्याय पाँच प्रकार का है, वाचना, पृच्छना अनुक्षा, आज्ञा और उपदेश । अब कौन सा शास्त्र स्वाध्याय के लिये उपयुक्त गिन जाय ? कवि उत्तर देते हैं " जिसमें पूर्वापर विरोध न हो, दया के बहाने भी पशु के मारने और उसका मांस खाने की बात न हो, जहाँ लोकविरुद्ध आचरण और मलिन क्रियाओं का उपदेश न हो, तथा जहाँ कुदान और कु- परिग्रहण का आदेश न हो और पापों के साधनों की पुष्टि न की गई हो वही आगम सचमुच में सर्वोत्कृष्ट है। ऐसे आगम का ११ विउ विसेस -पुराण- उच्पायणु । विणए रंजिज्जइ लहु-गुरयणु । विणए ं देव वि श्रवइ णासहि । विणए दुट्ठ वि सेस पयासहि । fare विज्जउ सबल वि सिज्झहि । विणए गह पीडाउ गिरुमहि । विए लोय पसिद्धि पवच्चइ । विणेए लच्छिय कहव ण मुच्चइ । free raरु होइ कयायरु । विणए दुज्जणु जायइ भारु । fare दा सीलु त सुहयरु । विश्ए कोवि ण जायइ तहु पह | विणए वस हवेइ सयलु वि जणु । विणउ इक्कु अविरुद्ध उ कम्म I विणउ स्थल-कल्लाह' कारण । विगउ गरह. दुग्गइ - विणिवारणु । - गिणि परोक्खय-विण्य-फलु, दोणायरिउ भिल्ल पणवंतहु | सधैं बहु संजाउ तहो, दिशि दिखि धणुहन्भासु कुणं तहो ॥ ११,३॥ १२ पुष्वावर - विरोह- परिचुक्कर । सो आयमु परमत्थ गुरुक्कउ । जेथु दयाभासेविण हम्मद । पसु तहु कप्पिड मंसु य जिम्मइ । धत्ता X x X x x X X X
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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