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________________ भास्कर [ भाग ३ तीसरी सन्धि में तपस्या में प्रवृत्त एक सुन्दरी और उसके रूप पर आसक्त एक विद्याधर के भाव और क्रियाओं की विषमता का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है 'जैसा जैसा उस सुन्दरी का ध्यान लगता जाता था, वैसा वैसा यह विद्याधर उसको अपना रूप बतलाने का प्रयत्न करता था। जैसे जैसे उसके ध्यान के अन्त होने का लक्षण नहीं दिखता था वैसे वैसे यह उसके गात्र की ओर घूर घूर कर देखता था। वह अपने मन में परमाक्षर 'ओं' का चिन्तन कर रही थी, तब यह अपने मन में रतिसुख का विचार कर रहा था। जैसे जैसे वह अपने शील को सम्हालने में लगती थी वैसे वैसे ये सविकार मन से देखते थे। वह गुरु के वचनों को छोड़ने के लिये तैयार नहीं थी, ये प्रेम के मारे बेहाल थे। वह अपनी प्रतिज्ञा भंग नहीं करती थी, ये नाना प्रकार के हावभाव दिखा रहे थे। वह द्वंद्व-भावना को छोड़ रही थी, ये गिड़गिड़ा कर बोल रहे थे। वह कर्मों के क्षय की भावना भा रही थी, तब ये उसके चारों ओर चकर काट रहे थे। वह भावनाओं में लीन थी तो ये कामवाण से तड़प रहे थे। और जैसे जैसे वह तत्वों के विवेचन में संलग्न हेाती थी वैसे वैसे ये हज़रत पृथ्वी पर पड़े अपने आपको भूल रहे थे। महिलहिं कज्जि सव्व सुक्खयरई । णरु दूरम्मि चयइ णिय पियरई। महिलहिं कज्जि करेइ कुकम्मई । अहणिसु दूरोसारिय धम्मइ। महिलहिं कज्जि भिडइ समरंगणे । परु मारइ मरेइ सई तक्खणे । । महिलहि देउ गुरु वि (पुणु) सज्जणु । मूसइ चोरु जेम अइणिग्घणु । महिलहि कज्जि कुलक्कम वज्जइ । णिंदियाइ वसणाइ पजई । महिलहि कज्जि गुरुत्तु सुहित्तणु । मुवइ पसिद्धि सोलु विवसत्तणु । महिलहिं कज्जि चडावइ पररिणु । णिय-जीविउ अवगएणइ जिह तिणु । तुहुं मि देव णिय-भज्जा-कारणि । जं जीविउ चएहि तुट्ठउ मणि । तं पक्खिहि मि दोसु किम दिज्जह । पिय मोहें विउसु वि मोहिज्जइ ॥४॥ जह जह झाण किं पि आहासइ । तह तह सो णं मुत्ति पयासह । जह जह सा ण झाणु परिसेसइ । तह तह सो तहो गत्तु गवेसइ । जह जह सा परमक्खरु चिंतइ । तह तह सो रइसुहु मणि चिंतह । जह जह सा ससीलु संभालइ । तह तहसो सवियारु णिहालइ । जह जह सा गुरु-वयणु ण छंडइ । तह तह सो गेहें अवरुडह । जह जह सा स-पइज्ज ण भंजइ । तह तह सो बहु भाव पउजह ।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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