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________________ किरण ३] वैद्य-सार २१ टीका-सोंठ, मिर्च, पीपल, शुद्ध पारा, सुहागा इन सबको बराबर बराबर और सबके बराबर तिन्तडीक के बीज ले। खरल में एक प्रहर तक पान के स्वरस में घोंट कर तीन तीन रत्ती के प्रमाण से देवे तथा ऊपर से एक पान का बीड़ा खावे। पश्चात् जितना पानी पीना होय पीवे इससे उत्तम विरेचन हो जाता है तथा सर्व प्रकार के शूल उदावर्त, पांडुउदर रोग शान्त हो जाते है। नोट-जितने बार दस्त लेना. होय उतने बार पान का बीड़ा खाकर पानी पीवे । २७-श्वासकासादौ गजसिंहरसः रसलोहं शुल्वभस्म वत्सनाभं च गंधक । तालीसं चित्रमूलं च एला मुस्ता च प्रन्थिकं ॥१॥ त्रिकटु त्रिफलायुक्त जैपालं तु विडंगकम् । सर्वसाम्यं विचूण्यैव ऋगवेरद्रवैयुतम् ॥२॥ चणप्रमाणवटिकां भक्षयेद्गुडमिश्रिताम् । श्वासकासक्षयं गुल्मप्रमेहं तृड्जरागदम् ॥३॥ वातमूलादिरोगाणि हंति सत्यं न संशयः। ग्रहणी पांडु शुलं च गुदकीलं गूढगर्भकम् ॥४॥ गजसिंहरसो नाम पूज्यपादेन भाषितः। टीका-शुद्ध पारा, लोह भस्म, ताम्रभस्म, शुद्ध विष, शुद्ध गंधक, तालीस पत्र, चित्रक, छोटी इलायची, नागरमोथा, पीपरामूल, सोंठ, मिर्च, पीपल, हरी, बहेरा, आँवला, शुद्ध जमालगोटा, वायविडंग ये सब औषधियां बराबर २ लेकर अदरख के रस के साथ घोंट कर चना के बराबर गोली बनाबे तथा पुराने गुड़ के साथ एक एक गोली प्रातःकाल और सायंकाल सेवन करे तो श्वांस, खांसी, क्षय, गुल्म, प्रमेह, तृषा, ग्रहणी, शूल, पांडु, गुदकील (बवासीर का भेद) मूढ़गर्भ तथा अनेक प्रकार के बातरोग नाश हो जाते हैं इसमें कोई संशय नहीं है, ऐसा पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। २८-श्वासकासादौ सूतकादियोगः सूतकं गंधकं भाी चामृतं चित्रपत्रकं । विडंगरेणुका मुस्ता चैलाकेशरप्रांथिका ॥१॥
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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