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________________ भास्कर [ भाग २ २४-विबंधे विरेचकतिक्तकोशातकीयोगः तिक्तकोशातकीबीजं तिन्तडीबीजसंयुतम्। पातालयंत्रमार्गेण तैलं तत्तिक्ततुंबके ॥१॥ सार्धे सषीजे मासार्ध क्षिपेत् सिद्ध भवेत्ततः। तेन पादप्रलेपेन नामिलेपेन वा भवेत् ॥२॥ आमं विरेचयत्याशु वान्तौ तु हृदयं पुनः। ' लेपयेत् क्षालयेन्निम्बवारिणा स्तंभनं भवेत् ॥३॥ टीका-कड़वी तुरई के बीज, तिन्तडीक के बीज, इन दोनों को बराबर बराबर लेकर पाताल यंत्र के द्वारा उनका तैल निकाले और उस तैल को कड़वी तुमरियाबीजसहित आधी काट कर उसमें भर कर १५ दिन तक रखे तो यह तैलसिद्धि हो एवं फिर उसको निकाल कर काम में लावे। उस तैल को पैरों में लगाने से तथा नाभी पर लेप करने से आम दोष का विरेचन होता है, यदि बमन हो जाय तो हृदय पर लेप करे और नीम की पत्ती के ठंडे पानी से प्रक्षालन करे तो बमन शान्त हो जाता है। २५–विबंधे प्रथम इच्छाभेदिरसः जैपालरसगंधांश्च स्नुहीक्षीरेण मर्दयेत् । विश्वाहरीतकी शृङ्गबेरद्रावेण संयुतः ॥१॥ माषमानं ददेश्च व इच्छाभेदि विरेचनम् । यथेष्टं रेचनं भूयात् पूज्यपादेन भाषितः ॥२॥ टीका-शुद्ध जमालगोटा, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, इन तीनों को लेकर थूहर के दूध से घोंटे और उसमें सोंठ, बड़ी हर्र का बकला अदरख के रस के साथ मर्दन करके रख लेवे उसको एक मासे की मात्रा से देवे तो यथेष्ट इच्छानुकूल विरेचन होवे। . २६-द्वितीय इच्छाभेदिरसः व्योषं गंधं सूतकं टंकणं च तेषां तुल्यं तिन्तडीबीजमेतत् । खल्वे यामं मर्दयेन्नागवल्लीपर्णेनैवंवल्लमात्रप्रवृत्तिः ॥ इच्छाभेदि दापयेच्चाथ सेव्यं तांबूलाते तोयपानं यथेच्छ । यावत्कुर्याद् रेचनं तावदेव शूलेषदावर्तपांडूदरेषु ॥१॥
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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