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________________ २४ मध्यभाग — (पृष्ठ पूर्व ५२ पंक्ति ४) - अन्तिम भाग - -: भास्कर लेति पूर्वकथितं पुनरपि लीलेति कथितमेतस्मिन् । यस्मिन्नदः प्रकृष्टं तत्प्रकर्षं तदामनन्ति यथा ॥ कः कः कुत्र न घर्घरायितधुरी घेोरो घुरेत्सूकरः कः कः कं कमलाकरं विकमलं कर्त्तुं करी नोद्यतः । के के कानि वनान्यरण्यमहिषा नोन्मूलयेयुर्यतः । सिंहे! स्नेहविलासबद्धवसतिः पञ्चानना वर्त्तते ॥ X X X [ भाग २ इत्यमृतानन्दयोगिविरचिते अलङ्कारसंग्रहे वसुनिर्णयो नामाष्टमोऽध्यायः । "कन्नड़ कविचरिते " भाग २य पृष्ठ ३३ में एक अमृतनन्दी कवि के बारे में निम्नलिखित उल्लेख मिलता है। "इन्होंने अकारादि वैद्यनिघण्टु लिखा है । यह जैन कवि हैं । इनका लगभग १३०० शताब्दी में होना संभव ज्ञात होता है ।" 1 “रसरत्नाकर” नामक कन्नड़ अलङ्कार ग्रन्थ की भूमिका में स्वर्गीय ८० वेङ्कटराव बी० ए० एल०टी० तथा पण्डित एच० शेष ऐय्यङ्गार ने लिखा हैं कि - " अमृतनन्दी का अलङ्कारसंग्रह नाम का एक ग्रन्थ है । उसमें (१) वर्णगण- विचार (२) शब्दार्थ - निर्णय (३) रसनिर्णय (४) नेत्त्रभेदविचार (५) अलङ्कारनिर्णय (६) देोषगुणालङ्कार - निर्णय (७) सन्ध्यङ्गनिरूपण (८) वृत्तिनिरूपण (१) काव्यालङ्कारनिरूपण नामक ये नव परिच्छेद हैं। यह भी इनका कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं है । क्योंकि प्राचीन आलङ्कारिक प्रन्थों का देखकर 'मन्व' भूपति की अनुमति से यह ग्रन्थ संचित करके मैंने लिखा है यों ग्रन्थारंभ में रचयिता ने स्वयं कहा है । यह मन्व राजा सोमसूर्यकुलोत्तंस, समुद्रबिरुदाङ्कित, यमगंडरगंड, केारवं कभीम, समरनिरङ्कुश एवं नूत्तसाहसाङ्क आदि बिरुदावली से अलंकृत थे। इस बात का कवि ने ग्रन्थ के प्रत्येक परिच्छेदान्त-पद्य में कहा है । इस मन्वभूपति के पिता शिवपादाब्जषट्पद भक्ति भूमिप थे ।* तिरुचनापल्ली के जम्बुकेश्वर देवस्थान में प्राप्त प्रतापरुद्रदेव के एक शासन से मन्वगण्ड गोपाल नामक एक प्रताप रुद्र का सामन्त था ऐसा विदित है, इसलिये अनुमान किया जाता है कि यही अमृतनन्दी के आश्रयदाता होंगे । * किन्तु भवन की इस प्रति में ""जनपादाब्जषट्पदः " यही पाठ है ।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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