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| १७ वीं | ११०० .
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प्रभाचन्द्र
सागारधम मृत सिद्धान्तसार
सिद्धस्तोत्र ५८ सिद्धराशि
__ (सं०)
मूलप्रन्थ आशाधर जी का है।
कल्याणकीर्ति
| क्षत्रचूड़ामणि
क्षपणसार
नोट-यह तालिका 'कन्नड़-कवि-चरिते' भाग १,२,३ के आधार पर तैयार की गई है। बहुत कुछ सम्भव है कि, इसमें और भी कई टीकार्य छूट गई हों जो 'कन्नड़कविचरिते' के रयिता को भी उपलब्ध नहीं हुई हों। इसलिए यह तालिका पूर्ण नहीं कही जा सकती। उक्त 'कविचरिते' के भागों में कई ग्रन्थों का परिशिष्ट में केवल नाम ही दिया गया है। इससे उन ग्रन्थों का विशेष हाल मालूम नहीं हो सका। बल्कि, जिनग्रन्थों पर मुझे सन्देह हुआ उन ग्रन्थों का नाम भी मैंने इस तालिका में शामिल नहीं किया है । जिन प्राकृत, संस्कृत ग्रन्यों के पाठ अशुद्ध मुद्रित हैं या पाठों में संदेह है उन पाठों को इन टीकाओं के मूल से मिलाने से वह दूर हो सकता है। साथ ही साथ यह भी सम्भव है कि, इन कन्नड़-टीकाकारों ने संस्कृत-टीकाकारों को अपेक्षा मूल ग्रन्थों के अर्थ को विशदरूप से खोल दिया हो अतः समालोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन के लिये यह तालिका उपयोगी है।
के० बी० शास्त्री,
किरण ३ ] कतिपय (दि०) जैन संस्कृत प्राकृत ग्रन्थों पर प्राचीन कन्नड टीकायें ११३