________________
किरण ३ ]
महाराज जीवन्धर का हेमांगद देश और क्षेमपुरी
१६
को देखने के लिये इधर उधर घूमते हुए हम सबों ने एक स्थान पर किसी एक पुण्यमाता-आपकी माता को देखा। उन्होंने हमलोगों से पूछा कि तुमलोग कहाँ के रहने वाले हो और कहाँ जो रहे हो। फिर हमने आपको घटना की सारी बातें उन माननीय माता को सुनाई। यह सुनकर उन्हें दारुण दुःख हुआ। बाद उन्हें बारबार आश्वासन दे एवं उन से आज्ञा लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुए हैं।' पद्मास्य-द्वारा की हुई उल्लिखित दण्डकारण्य की चर्चा से भी यही ज्ञात होता है कि हेमाङ्गद देश विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में नहीं था किन्तु उससे उत्तर। क्योंकि उस समय जीवन्धर दक्षिण में ही थे।
अब लीजिये चौथा कारण। जीवन्धर स्वामी मित्र श्रेष्ठ पद्मास्य के मुख से पूज्यमाता की चर्चा सुनकर उनके दर्शनों के लिये विशेष उत्कण्ठित हुए। श्वशुर आदि से आज्ञा लेकर उन्होंने वहाँ से चल तथा दण्डकारण्य में पहुँच कर अपनी माता का दर्शन किया। फिर उसी समय वह अपनी माता का मामा के पास भेजकर स्वयं राजपुरी को चलपड़े। इनके मामा गोविन्द विदेह (मिथिला) के धरणी-तिलक नगरी के राजा थे। पीछे जीवन्धर ने इन्हीं अपने मामा की सहायता से काष्ठाङ्गार को परास्त किया था। स्वामिद्रोही काष्ठाङ्गार को परास्त करने के लिये गोविन्द राजा जीवन्धर-कुमार के साथ विदेह से कुछ ही दिनों में राजपुरी पहुंचे थे। अगर हेमाङ्गद देश दक्षिण भारत में होता तो कुछ ही प्रयाणों (पड़ावों) में गोविन्दराज का विदेह से राजपुरी पहुंचना सम्भवपरक नहीं था। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि विदेह से हेमाङ्गद की राजधानी अधिक दूर पर नहीं थी। साथ ही साथ यह भी संभव नहीं है कि गोविन्दराज अपनी बहन विजया को विदेह से अधिक दूरवर्ती दक्षिण भारतीय राजपुरी में व्याह देता। प्राचीन मिथिला (वर्तमान तिरहुत) का विदेह कहने में मैं समझता हूं कि किसी को मतभेद नहीं हो सकता।
, देखो-"क्षत-चूड़ामणि" लम्ब ७, ८ । २ देखो."क्षत्रचूड़ामणि" लम्ब ८ । ३ (१) अथ राजपुरीं प्राप्य राजा कैश्चित्प्रयाणकैः । निकषा तत्पुरी क्वापि निषसाद महाबलः ॥
(क्षत्रचूड़ामणि लम्ब १० श्लोक २०) (२) xxx मायूरातपत्रसहस्रान्धीकृताष्टदिङ्मुखमनीकं पुरोधाय, कैश्चित्प्रयाणैर्गोविन्दराजः क्कचन राजपुरी निकषा निषसाद ।
(जीवन्धरचम्पू लम्ब १० पृष्ठ १०६) (३) xxx बलिक गोविन्दावनीश्वर। हलवु पयणदोलनुजे सहिता। xxxx
(जीवन्धरचरिते सन्धि १५, पद्य ३)