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[ भाग २
दूसरा कारण यह है कि जीवन्धर, यक्ष की अनुमति से उनसे विदा ले एवं चलकर पढवदेशस्थ चन्द्राभा नगरी में पहुँचते हैं और मन्त्रप्रभाव से सर्पविष से मरणोन्मुखी राजा धनपति की पुत्री पद्मा को जीवनदान देकर पीछे राजा के एकान्त प्राग्रह से इसी पद्मा का अग्निसाक्षिपूर्वक स्वीकार करते हैं। बाद जीवन्धर स्वामी कुछ दिन वहीं रहकर वहाँ से विना किसी से कुछ कहे सुने चुपचाप चलकर मार्ग में अनेक तीर्थ-स्थानों की बन्दना करते हुए - दक्षिण देश' की क्षेमपुरी या क्षेमपुर के सहस्रकूट चैत्यालय में पहुँचते हैं । जीवन्धर का हेमाङ्गद दक्षिण भारत में होता तो जीवन्धर की दक्षिणयात्रा का यह उल्लेख नहीं मिलता ।
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भास्कर
तीसरा कारण यह है कि जीवन्धर क्षेमपुरी में भी कुछ ही दिन रहकर जब हेमाभा ब्रुगरी में पहुंचे और वहां राजकुमारी कनकमाला से विवाह कर अपने शालों के ग्रह से बुड्डी रहने लगे तब भाई नन्दाढ्य और पद्मास्य आदि उनके मित्र भी वहीं पहुँचे । वहाँ पुर जीवन्धर से पद्मास्य इस प्रकार कहता है - "आपके विरह से दुःखित हमलोग आपकी सेवा में आते हर कुछ समय के लिये दण्डकारण्य में ठहरे। वहाँ तपस्वियों के आश्रम
१ (१) ततस्तस्माद्विनिर्गत्य देशे दक्षिणनामके । सहस्रकूउमाश्रित्य श्रीविमानं नुनाव सः ॥ (तलचूड़ामणि लम्ब ६ श्लोक ३२ ) (२) x X x तद्वनान्निर्गत्य निसर्गरुचिरं नगरप्रमुखै रोचितमपि नरोचितं सर्वोत्तरमपि नाम्ना दक्षिणदेशमासाद्य x X X X
( जीवन्धरचम्पू लम्ब ६ष्ट, पृष्ठ ६६-६७ ) (३) x x x जन्तु संरक्षणदत्तस्य विडम्बित तो गोपतेर्दक्षिणदेशस्य मणिमुकुटायमानचिकट शिखरचुलुकिताम्बरं जाम्बूनदोपपादितस्थूलस्थूणासहस्रसंबाधमण्डितमण्डपमकाण्डभवदाखण्डलधनुः काण्डशंकानिष्पादनशौण्डनैकपुष्पोपहारमहरहरभिवर्धमानसपर्यमविलयं कमपि श्रीजिनालयमद्राक्षीत् ।
( गद्यचिन्तामणि लम्ब ६ष्ट पृष्ठ १५२ ) (४) मेरेव दक्षिणदिक्किनलि बं । धुरद विषर्याद विमलपुरवर । करसु नरपति यापुरदि गुणभद्रनें ॥ परदनिहनातन कुमारिति । वरसतिय माणिक्यवेने वि । स्तरदोलेसेदलु मदनमोहन मूर्शियन्ददुलि ॥
नोट – इस पद्य में क्षेमपुर के स्थान में 'विमलपुर' मिलता है। पुर को सेमपुर का पर्यायवाची शब्द मानकर ही यह लिखा है प्रारंभिक पथ में उसे सेमपुर ही स्पष्ट लिख दिया है ।
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२ देखो - ततचूड़ामणि लम्ब ५, ६ ।
( जीवन्धरचरिते सन्धि १२ पद्य म)
ज्ञात होता है कि कवि ने विमल
क्योंकि उन्होंने सन्धिसार-सूचक