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महाराज जीवन्धर का हेमांगद देश और क्षेमपुरी
(ले० — श्रीयुत पं० के० भुजबली शास्त्री)
महाराज जीवन्धर श्रीमहावीर स्वामी के समकालीन तद्भव-मातगामी कलाविश एक प्रतापी जैन राजा थे । श्रेणिकादि समकालीन अन्यान्य कतिपय जैन राजाओं के समान इन्हें भी ऐतिहासिक व्यक्ति मानने में किसी को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं होनी चाहिये । महाराज जीवन्धर हेमाङ्गद देश के शासक रहे । हेमांगद की राजधानी राजपुरी थी। इस लेख में सर्वप्रथम मुझे हेमाङ्गद देश ही पर कुछ प्रकाश डालना है । कनिंगहम साहब के "अनशेंट जागरफी ऑफ इण्डिया" के आधार पर बाबू कामता प्रसादजी ने अपने "संक्षिप्त - जैन-इतिहास" २य भाग १म खण्ड आदि में वर्तमान मैसूर या उसके निकटवर्ती भूभाग को जीवन्धर का हेमाङ्गद देश बतलाया है । उनसे पूछताछ करने पर मुझे यह भी ज्ञात हुआ है कि कनिंगहम साहब के उक्त कथन में हेमाङ्गद के पास सुवर्ण की खान, मलय पर्वत आदि का होना ही एकमात्र कारण है । परन्तु जीवन्धर के जीवनीविषयक स्वतन्त्र रूप से रचित जीवन्धर चरित्र, जोवन्धर-चम्पू, क्षत्रचूड़ामणि, गद्यचिन्तामणि, जीवन्धरचरिते (कन्नड़) इन ग्रन्थों से हेमाङ्गद के पास सुवर्ण को खान, समुद्र, मलय पर्वत आदि का होना सिद्ध नहीं होता। पता नहीं कि कनिंगहम साहब ने किस आधार पर हेमाङ्गद के निकट मलय पर्वत आदि उल्लिखित वस्तुओं का अस्तित्व माना है । संभव है कि कनिंगहम साहब के कथनानुसार किसी ग्रन्थ में मलय पर्वतादि हेमांगद के विशेषणरूप में मिलते हो। पर मेरा निजी अनुमान है कि जीवन्धर का हेमाङ्गद दक्षिण भारत में न हो कर उत्तर भारत में ही था। क्योंकि मुनि के पूर्व कथनानुसार जिस समय गन्धोत्कट सद्योजात जीवन्धर को श्मशान से घर लेगया उसी समय धात्री. वेशधारिणी देवी, रानी विजया को दण्डकारण्य में तपस्वियों के समीप छोड़ कर स्वयं किसी बहाने से चली गयी थी । " वह दण्डकारण्य प्राचीन काल में विन्ध्यपर्वत से लेकर गोदावरी के किनारे तक विस्तृत था । इसी वन में श्रीरामचन्द्र ने वर्ष बिताये थे । इस वन का बहुत अंश आज भी वर्तमान है। प्रकार से निश्चित सा हो जाता है कि राजपुरी इस दण्डकारण्य से कर इसी के आसपास में कहीं थी ।
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"क्षखचूड़ामणि' प्रथम लम्ब देखा । २ हिन्दी - विश्वकोष भाग १० पृष्ठ १४४ ।
वनवास काल में १४
इस घटना से एक अधिक दूर पर न रह