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________________ भास्कर [माग २ बहुरंगी धनुष और बिजली की चमक से मेघ मयूरपिच्छधारी पीताम्बर कृष्ण की शोभा पाता है, और पार्थ्याभ्युदयामें "खड्नस्यैकं कथमपि दृढं मे सहस्त्र प्रहारम् वक्षोभागे कुलिशकठिने प्रोच्छलद्रक्तधारम् विद्यु इण्डस्फुरितरुचिना वारिदस्येव भूयः । येन श्याम वपुरतितरां कान्तिमापत्स्यते ते॥" "शङ्कोरेवं प्रहृतमथवा धत्स्व शूराप्रणी मे। ' पिच्छोपाग्रप्रततिरुचिरं येन शोभाधिका ते क्रीडाहेतोविरचिततनोरिन्द्रनीलत्विषः स्या बर्हेणेव स्फुरितरुचिना गोपवेषस्य विष्णोः ॥" खड्ड बिजली का काम करता है और बाण का पिच्छ सप्तरंगों को धारण करता है। योगी के शरीर को यक्ष ने काला बताया हो है। इस प्रकार कवि जिनसेन जी की उपमा स्वभाविकता में शोभ रही है और कालिदास की उपमा तक पहुँचने का प्रयास कर रही है। इतनी सामग्रियों को एकत्रित कर कवि समस्यापूर्ति के दुर्वह भार का वहन करता है, अतः वह अवश्य ही प्रशंसा का पात्र है। जब कालिदास के शृङ्गार रस की अविरल धारायं चारों ओर से सिर पर गिरती दीखने लगती हैं, तो अपने योगी का योगभ्रश के भय से बचाने के लिये जिनसेन जी झटिति उन्हें योगबल से मेघ का रूप धारण करने का आदेश देकर उन्हें कामुकता के गोरख-धन्धे से बचा लेते हैं। कैसो चतुराई है। ऐसा हो जाने पर सारी की सारी समस्यायें सीधी हो जाती हैं, रास्ता सरल हो जाता है और "ज्ञातास्वादा विवृतजधनां को विहातुं समर्थः ।" के दोष से योगी बरी हो जाता है। कवि की कल्पना ने अद्भुत छटा दिखायी है। "मलिनमपि हिमांशोलक्ष्म लक्ष्मीन्तनोति।" कलाधर की कलङ्ककालिमा उनकी कांति को और भी कमनीय बनाती है। कविगण अपने काव्यों का उत्कृष्ट बनाने के लिये भगीरथ प्रयास करते हैं। रचना रसमय हो, गुणों का आगार हो, रीति रमणीय हो, भाव अनूठे हों, शैली सुन्दर हो, शब्द गम्भीर हों, भाषा मनोहर हो, यही उनके लक्ष्य रहते हैं। इसी अभीष्ट की सिद्धि के लिये उन्हें जी-तोड परिश्रम करना पड़ता है। परिस्थिति में जिस प्रकार अवसर पा मनुष्य को असावधान देख रोग के अप्रिय अवाञ्छित कोड़े शरीर में घुस जाते हैं, उसी प्रकार कवियों की रवनामों में श्रुतिदुष्टादि दोष चुपके से प्रविष्ट हो जाते हैं। इसीलिये साहित्य-दर्पणकार को कहना पड़ा कि सर्वथा निर्दोष काव्य सदा असम्भव है। परन्तु ये दोष चन्द्रकिरण की माई काव्य के गुणों के प्रद्योतक ही होते है। अस्तु,
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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