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________________ किरण ३] अमरकीर्तिगणि और उनका षट्कर्मोपदेश ८५ गणि संतिसेणु तहो जाउ सील णिय चरण-कमल-प्पामिय-महीसु । माहुर-संघाहिउ अमरसेणु तहो हुउ विणेउ पुणु हय-दुरेणु । सिरिसेणुसूरि पंडिय-पहाणु तहो सीसु वाइ-काणणा-किसाणु। पुणु दिक्खिउ तहो तसिरि-णिवासु अत्थियण-संघ-बुह-पूरियासु। परवाइ-कुंभि दारण-मइंदु सिरि चंदकित्ति जायउ मुणिंदु । तहो अणुउ सहोयरु सीसु जाउ गण अमरकित्ति णिहणिय-पमाउ। अहणिसु सुकइत्त-विलाय-लीणु जामच्छइ बहुविह सुय-पवीणु । तामण्णहिं दिणि विहियायरेण णायर-कुल-गयण-दिणेसरेण । चञ्चिणि-गुणशलहं गंदणेण अवविण्ण-दाण-पेरिय-मणेण । घाता-भन्वयण पहाणे, बुहगुण जाणे, बंधवेण अणुजायई । से सूरि पवित्तउ, लहु विण्णत्तउ, भत्तिएं अंबपसायई ॥६॥ १० परमेसर पइं णवरस-भरिउ विरइयउ णेमिणाहहो चरिउ। अण्णु वि चरित्तु सव्वत्थ सहिउ पयडत्थु महावीरहो विहिउ । तीयउ चरित्तु जसहर-णिवालु पद्धडिया-बंधे किउ पयासु। टिप्पणउ धम्मचरियहो पयडु तिह विरइउ जिह बुज्झेह जडु । सक्य-सिलोय-विहि-णियदिही गुंफियउ सुहासिय-रयण-णिही। ५ उनके शिष्य फिर पापों का नाश करनेवाले, माथुरसंघ के अधिप अमरसेन हुए। उनके शिष्य श्रीषेण सूरि हुए जो पण्डितों में प्रधान और वादिरूपी वन के लिये कृशानु (अग्नि) थे (अर्थात् उन्होंने सब वादियों को शास्त्रार्थ में परास्त कर दिया था। फिर उनके दीक्षित शिष्य श्री चन्द्रकीर्ति मुनीन्द्र हुए जो तपरूपी लक्ष्मी के निवास, अर्थिजनसमूह की आशा को पूरी करनेवाले तथा दूसरे वादिरूपी हाथियों के लिये मृगेन्द्र थे। उन्हीं छोटे सहोदर गणि अमरकीर्ति उनके शिष्य हुए। इन्होंने प्रमाद का सर्वनाश कर डाला था, वे अहर्निश सत्कायों के अवलोकन में लीन रहते थे और नाना प्रकार के शास्त्रों में प्रवीण थे। एक दिन नागरकुल-रूपी आकाश के सूर्य, चर्चिणी और गुणपाल के नन्दन, भन्यजनों में प्रधान, विद्वानों के गुणों को पहचाननेवाले तथा अमरकीर्ति के) अनुज बन्धु अम्बाप्रसाद ने अपने दिये हुए दान की मन में प्रेरणा से, भक्तिसहित और आदर करके सूरि जी से सहज ही प्रार्थना की"हे परमेश्वर ! आपने नवरसों से भरा हुआ नेमिनाथ-चरित्र रचा। दूसरा सब अर्थ-सहित महावीर का चरित्र बनाया जिसकी कथा प्रसिद्ध ही है। तीसरा चरित्र यशोधर नृप का पद्धडियाबंध में प्रकाशित किया । धर्मचरित्र का टिप्पण आपने ऐसा स्पष्ट रचा कि जड़बुद्धि भी उससे बोध लाभ करने । आपने संस्कृत श्लोकों की विधि द्वारा आनन्द उत्पन्न करनेवाले सुभाषितरत्न निधि का संग्रह किया। धर्मोपदेश-चूड़ामणि नामक, तथा ध्यान की शिक्षा देनेवाले ध्यानप्रदीप और
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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