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॥ श्रीजिनाय नमः॥
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THE JAINA ANTIQUARY. जैनपुरातत्व और इतिहास-विषयक त्रैमासिक पत्र
भाग २
दिसम्बर १६३५ । मार्गशीर्ष वीर नि० २४६२
किरण.३
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जय स्याद्-वाद!
(रच o-श्रीयुत कल्याण कुमार जैन 'शशि') तू ऊोन्नत मस्तक विशाल
नव युक्तायुक्त-विचार-सार ! जेनत्व तत्व का स्फटिक भाल नित अनेकान्त का सिंह-द्वार ! अपहृत मिथ्या भ्रमतिमिर-जाल
करते आये तेरा प्रसार ! तू जैनधर्म का शंखनाद !
अतुलित तीर्थंकर-पूज्यपाद ! तीर्थंकर पदकी निधि ललाम;
तू पक्षापक्ष-विरूप-तूप सिद्धान्तवाद का सद्-विराम,
नय-विनिमय का साग रूप प्राकृत संस्कृति का अमरधाम
जूझे तुझसे पण्डित-अनूप तूसंसृति का निरुपम प्रसाद !
गौतम-गणधर जैमिनि कणाद ! जय स्योद्वाद् जय स्याद्वाद