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प्रतिमा-लेख-संग्रह
( संग्राहक-श्रीयुत बा० कामता प्रसाद जैन )
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(३) श्री दि० जैन लोहिया अग्रवाल मन्दिर मैनपुरी (गंज)
, नेमिनाथ-श्वेतपाषाण-१८ अं०-"शुभसं० १९२० फाल्गुण वदि ३ गुरुवासरे श्रीमूलसंधे
वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्यान्वये श्रीमद्भट्टारक जिनेन्द्रभूषणजिदेवस्तत्प?
श्रीमद्भट्टारक महेन्द्रभूषणजिदेवस्तत्पदे श्रीमद्भट्टारक राजेन्द्रभूषणजिदेवस्तदुपदेशात् · श्रीमदग्रवंशोद्भवः वाशिलगोलोत्पन्नः ॥ काष्टासंघ बाबू व्रजमोहनदासस्तद्भार्या सुंदरि
कुंवरिस्तत्पुत्रौ बाबू जगमोहनदास बाबू मुनिसोबतदासौ तद्भार्या कांताकुंवरि टुकुटुकु कुंवरि संज्ञके चतमिः प्रतिष्टाकर्ता आरानग- केलिरामस्तत्पुत्र डालचंद अग्रवार
गरगगोलोत्पन्नस्य मस्तके कृता ।" २ चंद्रप्रभ-कृष्ण पा०-१८ अं0-"सं० १९३४ वर्षे वैशाष सुदी ७ श्रीमूलसंघे.........
राज्यप्रवर्तमाने............।" (पढ़ने में नहीं आता)। ३ अर्हत-माणिक्यरत्न-२॥ अं०-लेखरहित । ४ शांतिनाथ–स्फटिक पा०-१४ अं0-"श्रो मूलसंघ वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदुकुंदा.
चार्यान्वये गरगगोल अगरवारवंसे झम्मनलाल प्रतिष्टितं सं० १९४५ माघवदी २।" ५ पार्श्वनाथ-हरित पा०-११ अं०-लेख नं. ४ के अनुरूप । ६ सुपार्श्वनाथ-हरित पा०-१० अं०-लेख नं० ४ के अनुरूप । ७ पार्श्वनाथ-हरित पा०-११ अं०-लेख नं० ४ के अनुरूप । ८ महावीर-श्वे० पा०-३० अं०-"श्री सं० १९५५ माघ शुक्ल १२ प्रतिष्टितं ।" ६ पार्श्वनाथ- श्वे० पा०-२८ अं०-"श्री सं० १९५५ माघ शुक्ल १२ दिगंबराम्नाय प्रतिष्टितं
हाथरसे।" नोट-जो प्रतिमायें खड्गासन हैं उनके साथ "खड्गासन" लिख दिया है वरन् सब
पद्मासन समझना चाहिये । मौलिकता लुप्त हो जाने के खयाल से “प्रतिमा-लेख-संग्रह' के लेखों की भयंकर
अशुद्धियां ज्यों की त्यों छोड़ दी गयी हैं। सम्पादक