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प्रशस्ति-संग्रह
किरण २]
मध्यभाग- ( पृष्ठ ३० पुष्पबाणरसः ) -
रसभस्म त्रिभागं स्यादुष्टभागं च गन्धकम् । चतुर्थ मौक्तिकं वाटं द्विभागा मौक्तिकी शिला ॥ तारमन्त्रकलोहानां वङ्गमाक्षिकनागयोः । अयस्कामं प्रवालाष्टौ तुल्यभागं प्रकल्पयेत् ॥ अन्तिम भाग -- ( पञ्चवाणरसः)
सुवर्ण रजतं कान्तं वैक्रान्तं तीक्ष्णमन्त्रकम् । प्रवालं मुक्तभसितं नागवङ्गञ्च भास्करम् ॥ एकैकसमभागं च सर्वतुल्यं रसेन्द्रियम् । तत्समं शुद्धगन्धञ्च हंसपादीरसेन च ॥ कौमारीरससंप्रोक्तं मर्दितञ्च दिनत्त्रयम् । काचकुप्यन्तरे क्षिप्त्वा विलेप्य वस्त्रमृत्तिकाम् arghas ear यामान्ते समुद्धरेत् । चूर्णीकृतं ततः खल्वे शतपत्त्ररसेन च ॥ दिनत्रयञ्च यत्नेन चाधिकं सहभावनात् । कस्तूरिकां च कर्पूरं भावयेत यथाविधि ॥ शाल्मलीकानि लाक्षाथ गान्धारी सममयेत् । वराचन्दन संयुक्तं कणक्षौद्र सिताज्यकम् । विंशतिञ्च प्रमेहाणां राजयक्ष्माननेकशः । शुक्रवृद्धिकरञ्चैव वन्ध्या च लभते सुतम् ॥ वध्यनष्टं पुष्पनष्टं मसृग्दरम् । रक्तपित्तं चाम्लपित्तं प्रस्थिस्रावहलीमकम् ॥ अहम्येव रजः स्त्रीणां भवन्ति प्रियदर्शनात् । वीर्यवृद्धिकरश्चैव नारीणां रमते शतम् ॥ पञ्चवाणरसो नाम पूज्यपादेन निर्मितः ॥
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पूर्वोद्धृत 'निदानमुक्तावली' और यह वर्तमान 'मदनकामरतम्' दोनों ग्रन्थ प्रशस्ति नहीं रहने एवं विषयविच्छेद नहीं होने से ज्ञात होता है कि अपूर्ण हैं। साथ ही साथ इन दोनों के रचयिता भी एकही पूज्यपाद मालूम होते हैं ।
इस प्रस्तुत ग्रन्थ मदनकामरत को कामशास्त्र कहना अनुचित नहीं होगा । क्योंकि ६४ पृष्ठों में से केवल १२ पृष्ठ तक तो महापूर्ण चन्द्रोदय, लोह, अग्निकुमार, ज्वरबलफणिगरुड, कालकूट, रत्नाकर, उदयमार्त्तण्ड, सुवर्णमाल्य, प्रतापलंकेश्वर राजेश्वर, बालसूर्योदय (दो प्रकार का ) इन अन्यान्य ज्वरादि रोगों के बिनाशक रसों का विवरण और कर्पूरगुण, मृगहार भेद, कस्तूरी मैद, कस्तूरी गुण, कस्तूर्यनुपान प्रौर कस्तूरीपरीक्षा आदि है। बांकी जो ५२ पृष्ठ हैं वे कामदेव के जो पर्यायवाची शब्द हैं उन्हीं भिन्न भिन्न नामों से अङ्कित ३४ प्रकार के कामेश्वर रसमय हैं। साथ ही बाजीकरण प्रौषध, तेल, लिङ्ग-बद्ध नलेप, पुरुषवश्यकारी औषध, स्त्रीवश्यभैषज, मधुरस्वरकारी औषध और गुटिका - निर्माण - विधि भी है । कामसिद्धि के लिये छः मन्त्र भी आये हैं । उक्त दिग्दर्शन से स्पष्ट हो जाता है कि इस ग्रन्थ के सभी पृष्ठ कामविषयक विधिविधानों से ही भरे पड़े हैं ।
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यों तो यह सारा ग्रन्थ पद्यबद्ध है किन्तु एक जगह पञ्चवाण रस के पद्याङ्कित पद्य की संस्कृत गद्य में व्याख्या कर दी गयी है।