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भास्कर
[ भाग २
जैसे कि सिंहलीय भाषा में ऐसी रचनायें (मयूरसंदेश, कोकिलसंदेश आदि) बहुत बताई जाती हैं। १७वीं शताब्दी के नरसिंहदास का रचा हुआ पुरातन बंगला भाषा में भी एक 'हंसदूत' मिलता है । इसी नाम के दो और काव्य माधवगुणाकर और कृष्णचंद्र के हैं।' दूतकाव्य के साहित्यविकाश में जैनकवियों का हाथ
दूतकाव्यों द्वारा धार्मिक एवं सैद्धान्तिक तस्वों और नियमों का प्रचार करने का सर्वप्रथम श्रेय संभवतः जैन कवियों को ही है। क्योंकि पाठवीं शताब्दी जैसे प्राचीन समय के रचे हुए श्रीजिनसेनाचार्य के 'पार्धाभ्युदय' में, जिसमें कि जैनधर्म के संभवतः सर्वप्रथम ऐतिहासिक संस्थापक श्रीपाश्र्वनाथ जी का जीवनचरित्र और उनकी शिक्षा को प्रकट किया गया है, समूचा का समूचा मेघदूत समस्यापूर्तिरूप में समाविष्ट कर लिया गया है। हाँ, ऐसा करने में कवि ने कहीं कहीं कालिदास के अर्थ और भाव से विभिन्न रूप में उनका व्यवहार किया है। जैन कवियों की ऐसी और भी रचनायें, मेघदूत के आधार पर रची गई हैं, और उनमें उनके रचयिताओं ने संस्कृत भाषा पर अपने पूर्ण प्राधिपस्व को प्रकट किया है और वे दूतकाव्य साहित्य के इतिहास में मुख्य स्थान को ग्रहण किये हुये हैं। शीलदूत चेतोदूत, नेमिदूत और मेघदूत समस्यापूर्ति के ऐसे जैनकाव्य हैं जिनमें मेघदूत के प्रत्येक श्लोक का अन्तिम चरण समावेशित किया गया है। इनमें भी काव्यरचना की श्रेष्ठता का प्रभाव नहीं है। हां, यह अवश्य है कि अपने भाव को प्रकट करने के लिये, इनको भाषा सरल और मधुर नहीं रही है। किन्तु उनमें जो मेघदूत के चरण मौजूद हैं उनसे उन ग्रंथकर्ताओं के समय वह जिस रूप में प्राप्त था उसका खासा दिग्दर्शन होता है, जिससे उसका असली रूप प्रकट हो जाता है। ___ जैनियों ने जिस प्रकार इस साहित्य के द्वारा धार्मिक तत्वों को प्रकाशित करने का प्रारंभिक उद्योग किया, उसी तरह उसका एक नया रूप भी उनके द्वारा हुआ। प्रायः सब ही जैनकाव्य हिन्दूकाव्यों के शृङ्गारादि विषय-पोषक रसों के विपरीत शान्ति और भक्ति रस से परिपूर्ण हैं। इस सम्बन्ध में उनके ' 'विज्ञप्ति पत्रों को' हमें नहीं भुला देना चाहिये, जो पर्युषणपर्व के समय जैनसाधुओं द्वारा उनके प्राचार्यों को लिखी हुई चिट्ठियां हैं और जो दूतकाव्यों के ढंग पर लिखी गई हैं (जैसे चेतोदूत, मेघदूतसमस्यालेख, इन्दुदूत आदि)। दूतकाव्यों से भौगोलिक परिज्ञान
किन्हीं दूतकाव्यों में दूत को मार्ग बताने के विवरण में अच्छे रूप का भौगोलिक परिचय दिया हुआ मिलता है; यद्यपि अधिकांश में वह प्रायः नाम मात्र को है। किन्तु जो कुछ भी है वह संतोषप्रद है, क्योंकि भारतीय साहित्य में इस विषय का प्रायः नहीं के बराबर उल्लेख मिलता है। कालिदासजीने रामगिरि से अलका तक का जो भौगोलिक वर्णन अपने काव्य में लिखा है, उसके महत्व से प्रायः सब ही विद्वान् परिचित हैं। धोयी कवि के 'पवनदूत' में मलयपर्वतावली से रामा लक्ष्मणसेन की राजधानी विजयनगर बंगाल) तक के प्रदेश का अच्छा वर्णन है जिसका विवेचन १। Prof. Geiger, Litteratur und sprache der Singhalessen pp. 9-17. २। Ceylon Antiquary, vol. III. pp. 13 ff, ३ । बङ्गीय सोहित्य-परिचय पृष्ठ ८५०-६०। ४। हिस्ट्री आफ बंगाली बेन्ग्वेज एण्ड लिट्रेचर पृष्ठ २२५ ।