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________________ [ भाग २ हूँ ४ भास्कर (४८) हंसदूत - कवीन्द्राचार्य सरस्वती - कृत ४० श्लोकों में है । ' इनके अतिरिक्त दूतकाव्य ढंग के कुछ ग्रंथ और हैं परन्तु वह हाल की रचनायें हैं, इसलिये उपर्युक्त लिस्ट में उनकी गणना नहीं की गई है। वे भारत के विविध प्रान्तों के कवियों द्वारा ई० १६वीं शताब्दी के अन्तिम भाग और २०वीं शताब्दी के प्रारंभ में रचे गये हैं। इनमें से किन्हीं की रचना तो बहुत ही ऊँचे दर्जे की है 1 उदाहरणरूप में बंगाल के कृष्णनाथ न्यायपञ्चानन के वातदूत' का उल्लेख किया जा सकता है; जिसमें रामद्वारा सीता को संदेश भेजने का वर्णन है । इसके बाद द्वितीय श्र ेणी के काव्यों में' यादवचंद्र विद्यारत्न (सं० १७८६) का शुकदूतम् ' और दुधीच ब्रह्मदेव शन् का पिकसंदेश का नाम लिया जा सकता है। पिकसंदेश में एक कोयल ने मधुमक्खी को दूत बनाकर कवि के पास भेजा है और उसके द्वारा भारत की वर्तमान शोचनीय दशा का वर्णन किया है। कालिदास जीके मेघदूत के समान दो अन्य रचनायें ताजी हुई हैं । मेघप्रतिसंदेश में यक्ष की स्त्री ने उसी मेघ के हाथों अपना संदेशा यक्ष को भेजा है । और वह वर्णन बड़ा ही सरस और मनोहारी है। दूसरे त्रैलोक्यमोहन गुह नियोगी कविकीर्ति के मेघदौत्य में यक्षी उसी मेघ के द्वारा कुबेर के पास यक्ष को मुक्त करने का संदेश मेजती है, जिसे वह अन्त में मान लेता है और यक्ष-यती का मिलाप हो जाता है । मन्दिकल रामशास्त्री के ५ ६ दूतकाव्य का निकास दूतकाव्यों में सर्व-प्राचीन कविवर कालिदास जी का 'मेघदूत' है । कालिदासजी के काव्य का . मुख्य भाव दूतरूप में एक अजीव व्यक्ति द्वारा एक प्रेमी का अपनी प्रेमिका के प्रति प्रेमसंदेश भेजना है । यहां पर यह ध्यान में रहे कि प्रायः दूतकाव्यों में प्रेमियों द्वारा किसी अजीव पदार्थ के हाथों अपना प्रम-संदेश भेजने का नियम मुख्यता से मिलता है । कालिदासजी की इस अनोखी और कविकल्पनामय सूझ का आधार, यदि कोई था, तो वह क्या था; यह मालूम नहीं है । तो भी ऐसी सूम के चिह्न हमें कालिदास जी के समय से पहले अवश्य ही मिलते हैं। उदाहरणतः 'ऋग्वेद' (१०।१०८) में 'सरमा' नामक कुरो को पणि लोगों के पास दूत बना कर भेजने का उल्लेख है । रामायण और महाभारत में भी मूक पशुओं द्वारा प्र ेम सन्देश भेजने के उदाहरण मिलते हैं । रामने हनुमान को, (जिनको वैदिकशास्त्रों में पशुजाति का अनुमान किया गया है) अपना दूत बनाकर पास भेजा था, जिनके हाथों सीताजी ने भी अपना संदेशा रामचंद्रजी के पास पहुंचाया । ( रामायण ४।४४ व ५।४० ) ( महाभारत ३ । ५३३१ - २ ) में दमयन्ती ने जो राजा नल के पास से किन्तु इन दूतों के सम्बन्ध आये हुये हंस के द्वारा अपना संदेशा उनको भेजा था, उसका उल्लेख है । में इतनी बात अवश्य है कि इनको निरा मूक पशु ही नहीं माना गया, किन्तु इनके मनुष्य जैसी वाक्शक्ति आदि का होना वैदिक शास्त्रों में लिखा है । इस कारण उनको दूत बनाकर भेजने में कविकल्पना का कुछ भी चामत्कारिक भाव नजर नहीं पड़ता ! किन्तु इतने पर भी यह मानना कुछ १। A classified List of Skt. Mss, in the Palace Library at Tanjore— २। Calcutta, S. E. 1822. Burnell, p. 1637. ३। Ryot's Friend Press. ४ । झालरापाटन राजकीय सरस्वती-भवन द्वारा प्रकाशित । ५ । जयालय प्र ेस मैसूर (१४२३)। ६ । Sanyal & Co.. Calcutta, 1909.
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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