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भास्कर
[ भाग २
(३१) मेघदूत' - - कवि सम्राट् कालिदास कृत । यह दूत काव्यों में सर्वप्राचीन, सर्वोत्तम और बहुप्रसिद्ध है । इसकी कथा से प्रायः हर कोई परिचित है कि कैसे एक विरही यक्ष ने एक बादल को अपना दूत बनाकर अपनी यक्षी के पास संदेशा भेजा था, जिससे वह एक शाप द्वारा अलग किया गया था । अन्य बहु प्रचलित ग्रंथों की तरह इसका भी आकार अन्य कवियों की कृपा से बढ़ गया है । बल्लभदेव की टीका के अनुसार हल्जश सा० इसके १११ श्लोक बतलाते हैं, किन्तु दूसरी ओर के० बी० पाठक महोदय 'पाश्वभ्युदय' के अनुसार १२१ श्लोक बताते हैं ! दक्षिणावर्तनाथ, मल्लिनाथ और पूर्ण सरस्वती (विद्युल्लता) की टीकाओं में क्रमश: ११०, ११८ और ११० श्लोक हैं ।
(३२) मेघदूत -- मंत्री विक्रम- कृत ।
(जैनग्रंथमाला -- श्वे० कान्फ्रेन्स -- पृष्ठ ३३२)
(३३) मेघदूत - समस्यालेख -- न्याय, व्याकरण, काव्य और ज्योतिष विषयक विविध ग्रंथों के कर्ता मेघ विजयजी की कृति है । हैमकौमुदी के कर्ता भी यही हैं, जो सिद्धान्त कौमुदी का 'मोडेल' (Model) समझी जाती है और सन् १६६६ में पूर्ण हुई थी । मेघदूतसमस्यालेख में ग्रंथकर्ता मेघ को दूत बनाकर अपना संदेशा अपने गुरु विजयप्रभसूरि के पास भेजते हैं । यह सं० १७२७ को पूर्ण हुआ था । मेघदूत के पद्यों के चतुर्थ चरणों की समस्या पूर्ति इसमें की गई है।
(३४) रथाङ्गदूत - ( भूमिका, जैनमेघदूत, पृ० १०) ।
(३५) विप्रसंदेश -- लक्ष्मणसूरि - विरचित । इसमें रुक्मिणी ने कैसे एक वृद्ध विप्र को अपना दूत बनाकर कृष्णजी के पाम भेजा था, इसका वर्णन हिन्दुओं के भागवतपुराण (१०।५२ ) के अनुसार है।
(३६) शीलदूत' - महीपालचरित्र, कुमारपाल महाकाव्य और आचारादर्श के कर्त्ता चारि 'सुन्दरगणि की रचना 1 यह सर्वथा दूतकाव्य नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें कोई दूत कहीं नहीं भेजा गया है । इसके १३१ श्लोक हैं, जिनमें से पहले के १२५ श्लोकों के अन्तिम चरण कालिदास जी के मेघदूत के श्लोकों के अन्तिम चरणों के समान है । मेघदूत के चरणों का समावेश इसमें होने के कारण ही शायद इसका नामोल्लेख राजकुमार के गृहत्याग करने और भद्रवाहु स्वामी के सं० १४८७ में खम्भांत (गुजरात) नामक स्थान में (शोलदूत श्लोक १३१) ।
दूतकाव्यरूप में हुआ है । इसमें स्थूलभद्र निकट दीक्षा लेने का वर्णन है 1 पुस्तक वि० वहां के सरदार के आश्रय
में समाप्त हुई थी ।
एक प्रेमी ने स्वप्न में
अपनी प्राणवल्लभा
(३७) शुकसंदेश -- लक्ष्मीदास की रचना है, जिसमें का विछोह न सह सकने के कारण उसके पास तोते को दूत बनाकर अपना संदेश लेकर भेजा, यह वर्णन है । इसमें पूर्व संदेश और उत्तर संदेशरूप दो भाग हैं, जिनमें क्रमशः ७४ और ८६ श्लोक
१ | अनेक भावृत्तियां प्रकट हो चुकीं, जिनमें दा अच्छी हैं; (१) के० बी० पाठक वाली (Oriental Book Supplying Agency, Poona. 1916) और डॉ. हल्ज़श की (Royal Asiatic Society, London, 1911).
२। आत्मोनन्द-ग्रन्थमाला नं० २४ ।
३ ॥ पूर्णचन्द्रोदय प्र ेस, तंजोर द्वारो प्रकाशित (१९०६) ।
४। श्रीयशोविजय-ग्रन्थमाला, १४ ( बनारस सन् १९१५) ।