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________________ किरण २] संस्कृत में दूतकाव्य साहित्य का निकास और विकास (२०) पान्यदूत-भोलानाथ की रचना है, जिसमें १०५ पद्य शार्दूलविक्रीडित छंद में हैं। लेखक तिकुरी का एक वैष्णव ब्राह्मण है। (२१) पिकदूतम् के ३१ शार्दूलविक्रीडित पद्यों में गोपियों द्वारा कृष्ण के प्रति कोयल को दूत मानकर संदेश भेजने का वर्णन है। (इसकी एक प्रति लेखक के पास है)। __ (२२) भक्तिदूती'-काली प्रसाद-कृत । इस अलंकृत काव्य में कवि ने भक्ति को दूती नियत करके अपनी मानी हुई वल्लभा मुक्ति के पास एक संदेशा भेजा है। कुल २३ पद्य हैं। (२३) भृङसंदेश'--कालीकट के राजा रविवर्मा और गोडवर्मा के दरबार के कवि बासुदेव की रचना है। इसमें एक पुरुष ने अपनी स्त्रो को जो संदेश भेजा है वह कल्पित किया गया है। १६२ श्लोकों में पूर्ण है। . . (२४) भ्रमरदूत -वद्यानिवास के पुत्र रुद्वन्यायवाचस्पति द्वारा लिखित है, जो न्यायसूत्रों के टीकाकार प्रतीत होते हैं ! यह भावविलास के कर्ता से भिन्न हैं। इसका भाव चन्द्रदूत (नं० ६) की तरह है। अन्तर सिर्फ इतना है कि यहां दूत का काम भ्रमर कर रहा है । (२५) मनोदूत - विष्णुदास ने रचा है, जो बंगाल के प्रसिद्ध सुधारक 'चैतन्य' के एक निजी संबंधी थे। इसके १०१ वसन्ततिलका पद्यों में 'कवीन्द्र' ने अपने मन को ही दूत बनाकर विष्णु के पास भेजा है। (२६) मनोदूत-तैलङ्ग व्रजनाथ ने सं० १८१४ में रचा था। यहां द्रौपदी ने चीरहरण के समय अपने मन को दूत बनाकर कृष्ण के पास संदेश भेजा, यह भाव चित्रित किया गया है। (२७) मनोदूत--विष्णुदास के परशिष्य रामराम की कृति प्रतीत होती है। यद्यपि इसका भाव भी नं० २५ के अनुसार है, परन्तु यह उससे भिन्न है। इसमें शिखरिणी छंद की प्रधानता है। (२८) मनोदूत काव्य --में आत्मा और जीव का सम्बन्ध दरसाया गया है। (२६) मनोदूत--यह संभवतः जैनकृति है। अतः उपर्युक्त से भिन्न है। (श्वे० जैन ग्रंथावली पृष्ठ ३३२)। (३०) मयूर-संदेश-रजाचार्य-कृत । (अडयार लायब्रेरी की सं० व प्रा० ग्रंथ लिस्ट, मद्रास पृष्ठ १३०)। 9Catalogue of Skt. Mes in the India office Library, VII, 3890. २। Notices of Skt. Mss.-R. L. Mitra, vol. III, p. 27. 3 | Descrip. Cat. of Skt. Mss, in the Madras Orient. Library, XX, No. 11865. ४ । Notices of Skt. Mss.-H, P. Sastri-vol, II. p. 153 etc. ।। H. P. Sastri-op. cit. Preface, p. 4. etc. ६ । Catal. of Skt. Mss. in the India Office Library, VII, Nos. 3897-3899. ७। काव्यमाला (१३वां गुच्छ) पृष्ठ ८४-१३०। ८। बङ्गीयसाहित्यपरिषत्, कलकत्ता-सं० प्रति नं० १२८२। & Catal, of Skt. Mss. in the Raghunath Temple Library of H. H. The Maharajah of Kashmir-Stein-p.70,287. Intro.XXV.
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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