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________________ किरण !] प्रकाशकीय वक्तव्य आदर्श को आगे रख कर ही भास्कर ने उदयाचल के शिखरारूढ़ होने की कमनीय कामना की है। भवन ने अपनी संचित साहित्य-सम्पत्ति को भास्करद्वारा प्रकाशित कर अपना कर्तन्त्र पालन किया । देखें समाज किस रूप में अपना कर्तव्यपालन करता है। दवाधर्म के प्राणस्वरूप सहृदय जैन बन्धुवान्धवों को अपनी जीवनमूरि साहित्यिक कृतियाँ अनेक शास्त्र-भाण्डागारों में दीमक एवं कीड़ों की खुराक होती दे कर उनके उद्धार की चेष्टा करते हुए अपनी सीमित दया एवं अहिंसा-धर्मक्षेत्र का विस्तार करना चाहिये। अपने अपने कालिजों के कामों में सदा अस्तव्यस्त रहनेवाले प्रोफेसर बाबू हीरालाल जी जैन एम०ए०, प्रोफेसर A. N. उपाध्ये M.A. एवं जैन साहित्य की अविरत सेवा करनेवाले बाबू कामता प्रसाद जी जैन M. R. A.S. जैसे दुर्द्धर्ष विद्वान् सम्पादकों को पाने के सौभाग्य का भास्कर को अखर्व गर्व है। यह सुवर्णसंयोग ही भास्कर की सर्वाङ्गसुन्दरता एवं प्रकृत विद्वानों की मनोहारिकता की शुभ सूचना दिये देता है। साथ ही साथ जैन साहित्यिकों में ख्याति पाये हुए भवन के सुयोग्य पुस्तकालयाध्यक्ष पं० के० भुजबली शास्त्री जी की भी सम्पादक-श्रेणी में प्रविष्ट होने की अनुमति कम प्रशंसनीय नहीं है। अर्थात् इन उल्लिखित विद्वानों ने जो "भास्कर" के सम्पादन का उत्तरदायित्वपूर्ण भार बहन करने में कोई आना कानी नहीं की है इसके लिये भास्कर का प्रकाशक यह "भवन" इन महाशयों का चिरकृतज्ञ है। अस्तु, भास्कर के प्रकाशन की चिरस्थायिता अनुप्राहक ग्राहकों की गुणग्राहिकता, जैन साहित्य तथा इतिहासप्रियता के उपर निर्भर है। क्योंकि इसकी किरणें भवन की चहारदिवाली अथवा अलमारियों के भीतर ही टिम-टिमाती रहें इसीलिये नहीं इसका प्रकाशनारम्भ हुआ है। भारतीय इतिहासों के समरक्षेत्र में जैनइतिहास भी अपने पुरातन प्रमाणबल से अंगद जैसे बड़ी दृढ़ता के .साथ सबल पैर अड़ा कर ललकारता रहे-यही इसके प्रकाशन का अन्तिम और पवित्र ध्येय है। आशा है कि सभी सहृदय बन्धुगण प्रकाशकीय वक्तव्य के इस निष्कर्ष से सर्वथा सहमत होंगे। निवेदकचक्रेश्वर कुमार जैन (B.Sc. B.L.)
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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