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________________ किरण २ ] बिजोलिया के शिला-लेख इन दो के अतिरिक्त और भी लेख शर्मा जी की कॉपी में थे। 'रेवती नही का शिलालेख' इन दो से भी बड़ा था। उसमें 'उत्तमगिरि' का वर्णन है जो कि उत्तम काव्यबद्ध है। उक्त काव्य का नाम 'उत्तरपुराण' लिखा है। उसके पाँचो सर्ग उस शिलालेख (रेवती नदी के शिलालेख) में खुदे हुए हैं। उसमें “दत्त्वा कणं सुरेशे स्थितवति भवति स्मेरवक्त्वारविन्दे......” (उत्तरपुराण सर्ग १-५) पद्य है। यह पद्य वादिदेवसूरि के स्याद्वादरत्नाकर का है। आर्हतमतप्रभाकर पूना से प्रकाशित स्या० रत्नाकर के प्रथम भाग के पृष्ठ २ में यह चतुर्थ पद्य है। इससे ज्ञात होता है कि उक्त काव्य की रचना वादिदेव सूरि के काल में या उसके पश्चात् हुई है। वादिदेव सूरि का सत्ताकाल विक्रम सं० ११४३ से १२२५ तक है। उक्त तीसरे शिलालेख के अन्त में वि० सं० १२३६ फाल्गुन बदि १० लिखा है। इसके प्रारम्भ का भाग इस प्रकार है :. "ओम् नमः सर्वज्ञाय-अज्ञानतिमिरान्धानां त्रैलोकसर्वजन्तूनाम् । नेत्रमुन्मीलितं येन तं वन्दे ऋषभं प्रभुम् ॥". . ... इसके प्रत्येक सर्ग के अन्त में "श्रीसिद्धिसूरिविरचिते उत्तमशिखरपुराणे (प्रथमः सर्गः द्वितीयः सर्गः इत्यादि )... इस पंचसर्गात्मक खुदे हुए काव्य के कुल २६४ पद्य हैं। इसमें पार्श्वनाथ-कमठ का प्रसंग और भ० महावीर-गौतम का मनोज्ञ वर्णन है। इतिहासकों के लिये विशेष महत्त्व का नहीं होने से हमने इसकी नकल नहीं की है। मैं आशा करता हूँ कि 'बिजोलिया' के सभी शिलालेखों के विषय में पुरातत्त्वज्ञ विशेष शोध करेंगे। . शिलालेख स्तम्भ नं. २ ___ॐ अर्हद्भयो नमः । स्वायंभुवं चिदानन्दं स्वभावे शास्वतोदयम् । धामध्वस्ततमस्तोमममेयं महिम स्तुमः ॥॥ ध्रव्योपेतमपि व्ययोदययुतं स्वात्मक्रम........., लोकव्यापि परं यदेकमपि चानेकं च सूक्ष्मं महत्। श्रीचन्द्रामृतपूरपूर्णमपि यच्छून्यं स्वसंवेदनम् । शानाद् ग़म्यमगम्यमप्यभिमतप्राप्त्यै स्तुवे ब्रह्मतात् ॥२॥ त्वमर्कसोमोवृत.........तलेऽस्मिन् घनानमूर्तिः किमु विश्वरूपः। स्रष्टा विशिष्टार्थविभेददक्षः स पार्श्वनाथस्तनुतां श्रियं वः ॥३॥ श्रीपार्श्वनाथ क्रियतां श्रियं वो जगत्रयीनन्दितपादपद्मः॥ विलोकिता येन पदार्थसार्थः निजेन सज्ञानविलोचनेन ॥४॥ सद्वृत्ताः खलु यत्र लोकमहिता मुक्ता भवन्ति श्रियो; रत्नानामपि भद्रये सुकृतिनो यं सर्वदोपासते। सद्धर्मामृतपूरपुष्टसुमनस्स्याद्वादचन्द्रोदयाः काँक्षी सोनसनातनो विजयते श्रीमूलसंघोदधिः ॥५॥ श्रीगौतमस्यादिगणीशवंशे
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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