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॥ श्रीजिनाय नमः॥
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THE JAINA ANTIQUARY. जैनपुरातत्व और इतिहास-विषयक त्रैमासिक पत्र
भाग २
सितम्बर १९३५ । भाद्रपद वीर नि० २४६१
किरण २
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चन्द्रगुप्त
(ले०-श्री महेश चन्द्र प्रसाद, एम.ए.) पाहर में थे सूर्य सम, भीतर चन्द्र समान । गहन-ज्ञान-गरिमा रही, तुम में गुप्त सुजान ! ॥१॥ घर तज दक्षिण को गये, षट् रिपु हनने हेतु । रामचन्द्र जी ज्यों गये, वध-हित रावण-केतु ॥२॥ त्याग प्राज्य साम्राज्य को, अनुपम भोग-विलास। परम प्रोच्च प्रासाद को, पर्वत किया निवास ॥३॥ पर्वत जो सबके लिए, कणवत् तुमको तौन । दृढ़ता है जिसमें उसे, कठिन वस्तु है कौन ? ॥४॥