SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Celebrating Jain Center of Houston Pratishtha Mahotsav 1995 नहीं, चिन्तन नहीं, स्मृति नहीं, कल्पना नहीं, अभिव्यक्ति का कोई साघन नहीं । ' व्यवहार राशि में भाषा है, चिन्तन है, स्मृति है, कल्पना है, अभिव्यक्ति के साधन हैं । आत्मा की शक्ति समान है । 'अव्यवहार राशि की आत्मा में जो शक्ति है वही ' व्यवहार राशि' की आत्माओं में है। दोनों में शक्ति का कोई अन्तर नहीं है । अन्तर है केवल अभिव्यक्ति का । 'अत्र्यवहार राशि' की आत्माओं में चेतना की केवल एक रश्मि प्रकट होती है। वह है स्पर्श-बोध | हमारे जागरित व्यवहार का प्रारम्भ वाणी से होता है । वाणी नहीं तो व्यवहार नहीं, वाणी है तो व्यवहार है । हमने जैसे ही 'अव्यवहार राशि' को पार कर 'व्यवहार राशि' में प्रवेश किय वैसे ही हमें सर्वप्रथम भाषा की उपलब्धि हुई, रसनेन्द्रिय का विकास हुआ । उस रसनेन्द्रिय से स्वादानुभूति और भाषा दोनों का कार्य सम्भाला । चेतना की दूसरी रश्मि, दूसरी किरण फूट पड़ी। हमने बोलना आरम्भ किया और स्वाद का अनुभव किया हम व्यवहार के जगत् में आ गए । हम अपनी चेतना को प्रकट करने की स्थिति में आ गए । 'अव्यवहार राशि' में हम चेतना को प्रकट नहीं कर पा रहे थे । जैसे ही हम 'व्यवहार राशि' के जगत् में आए वैसे ही हमने यह जानना शुरू कर दिया कि हमारा भी अस्तित्व है । हम भी हैं । `अपने अस्तित्व को प्रकट करने के लिए वाणी मुखर हो गई । हम दो इन्द्रिय वाले हो गए । अब हमारे लिए विकास का स्रोत खुल गया । हमने सामाजिक जगत् को निकट से जानना प्रारम्भ किया । हमें चेतना कि एक किरण और मिली । उससे हमने गन्ध का अनुभव किया। हम तीन इन्द्रिय वाले हो गए । हमने सूंघकर बाह्य जगत् से सम्बन्ध स्थापित करना सीख लिया । हमने अनुभव किया कि फूलों में गन्ध होती हैं केवल फूलों में ही नहीं, मनुष्य में भी गंध होती है । इस जगत् की कोई वस्तु ऐसी नहीं, जिसमें गंध न हो । हम और आगे चले । चेतना की चौथी किरण प्रस्फुटित हुई उसके द्वारा हमने अपने जगत् को देखा । रंग को देखा, रूप को देखा । हम चकित रह गए। कितनी वस्तुएं ! कितने रूप ! कितने आकार और कितने प्रकार ! हम चार इन्द्रिय वाले हो गए । हमारा विकास क्रम और आगे बढ़ा । हमें श्रोत की उपलब्धि हुई । हमने सुनना प्रारम्भ किया। व्यवहार जगत् के पहले चरण में हमने बोलना अर्थात् सुनाना शुरू किया और चौथे चरण में सुनना शुरू कर दिया। इस चरण में हमने शब्द का दान और आदान- दोनों प्रारम्भ कर दिए । अब हमारा व्यवहार-जगत् के साथ पूर्ण सम्पर्क स्थापित हो गया हम पांच "One of the hardest secrets for a man to keep is his opinion of himself' Page 89 For Private & Personal Use Only Jain Education International (Author Unknown) www.jainelibrary.org
SR No.528921
Book TitleJain Society Houston TX 1995 11 Pratistha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Society Houston TX
PublisherUSA Jain Society Houston TX
Publication Year1995
Total Pages218
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, USA_Souvenir Jain Center TX Houston, & USA
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy