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________________ Celebrating Jain Center of Houston Pratishtha Mahotsav 1995 उसे आंख उठाकर देखने के लिए भी तैयार न हों, यह अव्यावहारिक बात है व्यवहार उन लोगों के लिए है जो व्यवहार के धरातल पर जीते हैं। चेतना के धरातल पर जीने वाले लोग उसकी गहराई को देखते हैं और उसी के आधार अपना निर्णय लेते हैं। व्यवहार के निर्णय उन्हें मान्य नही होते । व्यवहार पर जीने वाले लोगों को चेतना की गहराई पर होने वाले निर्णय मान्य नहीं होते। दोनों की मान्यताएं भिन्न होती हैं । इसमें कोई संदेह नहीं कि चेतना की गहराई में जाने पर जलने की बात समाप्त हो जाती है । समस्या है चेतना की गहराई में जाने की। जो चेतना की गहराई में चला जाता है वह सचमुच परमात्मा बन जाता है। चेतना के दो छोर हैं-एक आत्मा और दूसरा परमात्मा। एक बीज और दूसरा विस्तार । आपने देखा होगा कि बरगद का बीज कितना छोटा होता है और आपने बरगद के विस्तार को भी देखा होगा, वह कितना बड़ा होता है । नन्हा-सा बीज उतना फैल जाता है, उसकी कल्पना होना भी कठिन है । आत्मा बरगद का बीज है और परमात्मा उसका विकास। आत्मा का लक्ष्य है परमात्मा होना। यह लक्ष्य आरोपित नहीं है, किन्तु सहज है । उसकी सिद्धि में बहुत विघ्न हैं। इसलिए यह दूरी एक साथ ही नहीं पट जाती । उसके लिए आत्मा को एक लम्बी यात्रा करनी होती है। इस यात्रा के पहले चरण में अपने अस्तित्व का बोध होता है। आत्मा क्या है ? वह कहां से आई है ? वह कैसे उत्पन्न हुई है ? ये उलझे हुए प्रश्न है । ये सुदूर अतीत में ले जाते हैं-इतने सुदूर अतीत में कि उसका आदि-बिन्दु खोजना कठिन है। आत्माओं का एक अक्षय-कोष है जिसमें से वे निकलती रहती हैं । वह है वनस्पति । इसमें अनन्त-अनन्नत आत्माएं होती हैं। वनस्पति की एक श्रेणी है। उसका नाम है 'अव्यवहार राशि ।' उसमें ऐमी अन्नत-अन्नत आत्माएं हैं जिनका कभी विकास नही हुआ। वे अनादिकाल से उमी योनि में रह रही हैं। काल-मर्यादा, नियति और कर्म का समुचित योग होने पर कोई आत्मा उस राशि से निकलकर 'व्यवहार राशि' में आती है। यहां उसका विकास प्रारम्भ हो जाता है। वह एकेद्रिन्य से विकसित होते-होते पंचेन्द्रिय और मनुष्य की अवस्था में पहुंच जाती है। 'अव्यवहार राशि' की आत्माएं अविकसित और 'व्यवहार राशि' की आत्माएं विकसित होती हैं। 'व्यवहार राशि' एक नन्ही-सी-बूंद है और 'अव्यवहारराशि' एक महान् समुद्र है, अथाह समुद्र जिसका कोई आर-पार नहीं है। वहां कोई भाषा "Death is not a period, but a comma in the story of life" (Author Unknown) Page 88 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.528921
Book TitleJain Society Houston TX 1995 11 Pratistha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Society Houston TX
PublisherUSA Jain Society Houston TX
Publication Year1995
Total Pages218
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, USA_Souvenir Jain Center TX Houston, & USA
File Size9 MB
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