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Celebrating Jain Center of Houston Pratishtha Mahotsav 1995
इन्द्रिय वाले हो गए। हमारी चेतना की खिड़कियां खुल गई, पांचों रश्मियां प्रस्फुटित हो गई।
चेतना के सूर्य की अनन्त रश्मियां हैं। उनमें से पांच रश्मियां हमें उपलब्ध हो गई । हमारे केन्द्र में प्रकाश ही प्रकाश है उस पर एक आवरण पड़ा है जो प्रकाश को बाहर की ओर जाने से रोक रहा है । जैसे-जैसे उस लोहावरण को हटाकर हम आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे हमारी चेतना की रश्मियां प्रकाश देने लग जाती हैं एक बार विकास का क्रम प्रारम्भ होता है, वह रुकता नहीं। वह आगे से आगे बढ़ता चला जाता है। हमारे विकास का क्रम आगे बढ़ा, हमने एक दरवाजा खोल लिया। पहले खिड़कियां खुली थीं और अब एक दरवाजा खुल गला । हम मनवाले प्राणी हो गए। मन बहुत बड़ा दरवाजा है । इन्द्रिय छोटी खिड़कियां हैं । मैं देखता हूं। मेरे सामने एक आदमी बैठा है। आंख ने देखा। उसका काम पूरा हो गया। यह पहले क्या था? आंख नहीं जानती। बाद में क्या होगा-यह भी नहीं जानती । मन का काम पहले-पीछे को जानना भी है । वह भूत और भविष्य को भी जानता है । इन्द्रियां केवल वर्तमान को जानती हैं । मन, भूत भविष्य और वर्तमान-तीनों को जानना है। इन्द्रियों के द्वारा प्राप्त जानकारी का संकलन करना मन का काम है । उसके बिना पृथक्-पृथक् जाने हुए ज्ञान का संकलन नहीं हो सकता। १, १, १-प्रत्येक अंक के अर्घ-विराम लगाते चले जाइये, प्रत्येक अंक अलग रहेगा। अर्ध-विराम के न होने पर ही वे ग्यारह या एक सौ ग्यारह बन सकते हैं । यह जोड़ मन का काम है । वह अतीत की घटना से निष्कर्ष निकालता है, वर्तमान को बदलता है और भविष्य को अपने अनुकूल ढालने का प्रयत्न करता है। वह अतीत की स्मृति और भविष्य की, कल्पना करता है। यदि स्मृति और कल्पना नहीं होती तो हमारी दुनियां बहुत छोटी होती। हमारी दुनियां का विस्तार स्मृति और कल्पना के आधार पर हुआ है।
मन और बुद्धि का विकास होने पर मनुष्य ने सोचा-मैं कौन हूं? मेरे सामने है वह कौन है?' अस्तित्व की खोज शुरू हो गई। उस खोज ने हमें आत्मा और परमात्मा की चर्चा तक पहुंचा दिया। जब मन और बुद्धि हमारे साथ नहीं थे तब आत्मा और परमात्मा की कोई चर्चा नहीं थी। वह चर्चाहीन जगत् था । चर्चा के जगत् में हमने प्रश्न पूछे अपने से कम दूसरों से अधिक । उनके उत्तर मिले, अपने से कम और दूसरों से अधिक । हमारी चेतना इतनी विकसित नहीं हुई कि हम अध्यात्म की गहराई में जाकर अपने आप से पूछे और अपने आप उसका समाधान पा जाए । समाधान का सही उपाय है अपने आप से पूछना । जो मनुष्य अपने आप में समाधान खोजता है,
"The nearer the time for our death comes, the more we regret our wasting most of our life
(Author Unknown)
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