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श्री गुरुवे नमः
जैन धर्म जन धर्म मानव धर्म विश्व के सभी मुख्य प्राचीन धर्मों में एक महान् एवं श्रेष्ठ धर्म । जन-जन का धर्म होते हुए भी हम इसे विश्व के पटल पर विस्तार नही दे पाये, इसका सबसे पहला कारण मैं जैन धर्म के श्रावकों को कम साधु संतों को अधिक मानता हूँ। कारण कि हमने सत्य अहिंसा तप त्याग संयम चरित्र और दर्शन को आत्मा तक उतारने की बजाय पंथ और सम्प्रदाय मे अटका कर रख दिया, पथ की बजाय 'पंथ' में उलझ कर रह गये। 24 तीर्थंकरों की पंक्ति में भगवान महावीर प्राचीनतम धारा के अन्तिम शिखर थे एक शीर्ष महापुरुष जिन्होंने इस दुनिया को अहिंसा और अनेकान्त की नई परिभाषा दी। पर हम इस परिभाषा को शब्दों का सही भाव नहीं दे पाये। यही स्वरूप प्राप्त हुआ, एक नई धारा के रूप में और उदय हुआ जीसस का शब्द बदल गये, भाव वही रहे - सार्वजनिक प्रेम - सार्वजनिक चिंतन' के साथ जो बूंद से महासागर बन गई। क्यों ! हम वैसा विराट स्वरूप महावीर की धारा को उपलब्ध नहीं करवा पाये ?
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दूसरा महत्वपूर्ण कारण जो मैं समझता हूँ वह है हम साधु संत 'स्व' में अटक कर PLANNING के साथ TEAM WORK नहीं कर पाये
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TOGETHER EVERYONE ACHIEVE MORE मुझे यह कहते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि इस महान् धर्म को जो ऊँचाईयाँ हम साधु-संत नहीं दे पाये वह कार्य आज JAINA कर रहा है, विश्व में जैन धर्म को जन-जन तक पहुँचा कर मानव धर्म बना देना चाहता है। मैं उस दिन की कल्पना करता हूँ, सोचता हूँ तो आनन्दित हो उठता हूँ कि उस समय का विश्व कितना सुन्दर, समृद्ध, पवित्र, परम आनन्दमय एवं और सुसंस्कृत होगा जब JAINA इस महान् धर्म को सम्पूर्ण विश्व में जन-जन के दिल और द्वार तक पहुँचा देगा। मुझे विश्वास ही नही दिख भी रहा है कि जिस मकसद को लेकर सारे समाज के साथ JAINA आगे बढ़ रहा है उनका वह स्वप्न निश्चित ही पूरा होगा। भारत से इतनी
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