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________________ किरण ३] भगवान ऋषभदेवके अमर स्मारक [७१ सैनिकगण समरांगणमें उतर आये । रण-भेरी बजने दित कर लिया ! इन दोनों ही घटनाओंकी यथार्थताही वाली थी कि दोनों ओरके मन्त्रियोंने परस्परमें को प्रमाणित करनेवाले जीते-जागते प्रमाण आज परामर्श किया-'ये दोनों तो चरम शरीरी और उपलब्ध हैं । कहते हैं कि जिस स्थान पर दोनों उत्कृष्ट संहननके धारक हैं, इनका तो कुछ बिगड़ेगा भाइयोंका यह युद्ध हुआ था और जहाँ पर चक्र नहीं । वेचारे सैनिक परस्परमें क्ट मरेंगे । इनका चलाया गया था, वह स्थान 'तक्षशिला' के नामसे व्यर्थ संहार न हो, अतः उभयपक्षके मन्त्रियोंने अपने- प्रसिद्ध हुआ। (तक्षशिलाका शब्दार्थ तक्षण अर्थात् अपने स्वामियोंसे कहा-'महाराज, व्यर्थ सेनाके काटने वाली शिला होता है।) तथा बाहुवलीकी उस संहारसे क्या लाभ ? आप दोनों ही परस्परमें युद्ध उग्र तपस्याकी स्मारक श्रवणबेलगोल (मैसूर ) के करके क्यों न निपटारा कर लें ?' भरत और बाहुबली- विंध्यगिरि-स्थित बाहुबलीकी ५७ फीट ऊँची, संसारको ने इसे स्वीकार किया। मध्यस्थ मन्त्रियोंने दृष्टियुद्ध, आश्चर्यमें डालनेवाली मनोज मति आज भी जलयुद्ध और मल्लयुद्ध निश्चित किये और भरत घटनाकी सत्यता संसारके सामने प्रकट कर रही है। तीमों ही युद्धों में अपने छोटे भाई बाहुबलीसे हार तथा वहीं दूसरी पहाड़ी चन्द्रगिरि पर अवस्थित जड़गये । हारसे खिन्न होकर और रोषमें आके भरतने भरतकी मूर्ति उनकी किंकर्तव्यविमूढ़ताका आज भी बाहुबलीके ऊपर सुदर्शनचक्र चला दिया। कभी व्यर्थ स्मरण करा रही है। न जाने वाला यह अमोघ अस्त्र भी तद्भवमोक्षगामी भरत और बाहुबली दोनों ही भ० ऋषभदेवके बाहुबलीका कुछ बिगाड़ न कर सका, उल्टा उनकी पुत्र थे, अतएव उन दोनोंकी ऐतिहासिक सत्यताके तीन प्रदक्षिणा देकर वापिस चला गया। इस घटनासे प्रतीक स्मारके पाये जानेसे भ० ऋषभदेवकी ऐतिहा. संसारके आदि चक्रवर्ती भरतका अपमान हुआ और सिक प्राचीनता स्वतः सिद्ध हो जाती है। . वे किंकर्तव्य-विमूढ़ हो गये । पर बाहुबलीके दिलको इस प्रकार हम देखते हैं कि आज विविध रूपोंमें बड़ी चोट पहुंची और विचार आया कि धिक्कार है भ० ऋषभदेवके अमर स्मारक अपनी ऐतिहासि. इस राज्यलक्ष्मीको, कि जिसके कारण भाई भाईका ही कताकी अमिट छापको लिये हुए भारतवर्ष में सवत्र गला काटनेको तैयार हो जाता है। वे इस विचारके व्याप्त हैं, जिससे कोई भी पुरातत्त्वविद् इन्कार नहीं जागृत होते ही राज-पाटको छोड़कर वनको चले गये कर सकता। और परे एक वर्षका प्रतिमायोग धारण करके घोर आशा है सहृदय ऐतिहासिक विद्वान इस लेख तपश्चर्या में निरत हो गये। इस एक वर्षकी अवधिमें पर गम्भीरताके साथ विचार करनेकी कृपा करेंगे और उनके चरणोंके पास चींटियोंने बामी बना डाली और उसके फलस्वरूप भ० ऋषभदेवके अमरस्मारक और सांपोंने उसमें डेरा डाल दिया। पृथ्वीसे उत्पन्न हई भी अधिक प्रकाश में आकर लोक मानसमें अपना अनेक लताओंने ऊपर चढ़कर उनके शरीरको आच्छा- समुचित स्थान बनाएगे। 'अनेकान्त' की पुरानी फाइलें 'अनेकान्त' की कुछ पुरानी फाइलें वर्ष ४ से १२ वें वर्षतक की अवशिष्ट हैं जिनमें समाजके लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों द्वारा इतिहास, पुरातत्व, दर्शन और साहित्यके सम्बन्धमें खोजपूर्ण लेख लिखे गये हैं और अनेक नई खोजों द्वारा ऐतिहासिक गुत्थियोंको सुलझानेका प्रयत्न किया गया है । लेखोंकी भाषा संयत सम्बद्ध और सरल है । लेख पठनीय एवं संग्रहणीय हैं। फाइल थोड़ी ही शेष रह गई हैं । अतः मंगानेमें शीघ्रता करें । प्रचारकीदृष्टिसे फाइलोंको लागत मूल्य पर दिया जायेगा। पोस्टेज खर्च अलग होगा। -मैनेजर-'अनेकान्त', वीरसेवामन्दिर, दिल्ली Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527330
Book TitleAnekant 1954 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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