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________________ किरण ३ ] ग्रन्थ-रचना नेक नारियाँ विदुषी होनेके साथ २ लेखिका और कवियित्री भी हुई हैं उन्होंने अनेक ग्रंथोंकी रचना की है। पर वे सब रचनाएं इस समय सामने नहीं हैं। श्राज भी अनेक नारियाँ त्रिदुषी, लेखिका तथा कवियित्री हैं, जिनकी रचना भावपूर्ण होती है। भारतीय जैनश्रमण परम्परामें ऐसी पुरातन नारियाँ संभवतःकम ही हुई हैं जिन्होंने निर्भयतासे पुरुषोंके समान नारी जातिके हितकी दृष्टिसे किसी धर्मशास्त्र या आचार शास्त्रका निर्माण किया हो, इस प्रकारका कोई प्रामाणिक उल्लेख हमारे देखने में नहीं श्राया । श्रमण संस्कृतिमें नारी हां, जैन मारियोंके द्वारा रची हुई दो रचनाएँ मेरे देखने में अवश्य आई हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि वे भी प्राकृत, संस्कृत और गुजराती भाषाकी जानकार थीं। इतना ही नहीं किन्तु गुजराती भाषामें कविता भी कर लेती थी । ये दो रचनाएँ दो विदुषी श्रार्थिकात्रोंके द्वारा रची गई हैं। उनमें से प्रथमकृति तो एक टिप्पण ग्रंथ है जो अभिमान मेरु महाकवि पुष्पदन्तकृत 'जसहर चरिऊ' नामक ग्रन्थका संस्कृत टिप्पण है, जिसकी पृष्ठ संख्या १६ है और जिसकी खंडित प्रति दिल्लीके पंचायतीमंदिरके शास्त्र भण्डारमें मौजूद है। जिसमें दो से ११ और १६वाँ पत्र श्रवशिष्ट है। शेष मध्यके ७ पत्र नहीं है । सम्भवतः वे उस दुर्घटनाके शिकार हुए हों, जिसमें दिल्लीके शास्त्र भण्डारोंके हस्तलिखित ग्रन्थोंके त्रुटित पत्रोंको बोरीमें भरवाकर कलकत्ताके समुद्र में कुछ वर्ष हुए गिरवा दिया गया था। इसी तरह पुरातन खण्डित मूर्तियों को भी देहलीके जैन समाजने श्रवज्ञाके भयले अंग्रेजोंके राज्यमें बम्बईके समुद्रमें प्रवाहित कर दिया आ, जिन पर सुनते हैं कितने ही लेख भी अंकित थे। खेद है ! समाजके इस प्रकारके अज्ञात प्रयत्नसे ही कितनी ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री विलुप्त हो गई है। आशा है दिल्ली समाज आगे इस प्रकारको प्रवृत्ति न होने देगा । यशोधरचरित टिप्पण की वह प्रति सं० १५६६ मंगसिर वदी १० बुधवारको लिखी गई है। टिप्पणके अन्त में निम्न पुष्पिका वाक्य लिखा हुआ है-' इति श्री पुष्पदन्तकृत यशोधर काव्यं टिप्पणं श्रर्जिका श्रीरणमतिकृतं संपूर्णम् ।' टिप्पणके इस पुष्पिका वाक्यसे टिप्पणग्रन्थको रचयत्री 'रणमति' श्रार्यिका है और उसकी रचना सं० १५६६ से पूर्व हुई है । Jain Education International [ ८७ कितने पूर्व हुई है इसके जाननेका अभी कोई साधन नहीं है। - टिप्पणका प्रारम्भिक नमूना इस प्रकार है : " वल्लहो - वल्लभ इति नामान्तरं कृष्णराज देवस्य । पज्जत पर्याप्त मलमिति यावत् ।” दुक्किय पहाएदुः कृतस्य प्रथमं प्रख्यापनं विस्तरणं वा । दुःकृत मार्गो वा । लहु मोक्षं देशतः कर्मक्षयं लाघ्वेति शीघ्र पर्यायो वा । पंचसु पंचसु पंचसु - भरतैरावत विदेहाभिधानासु प्रत्येकं पंच प्रकारतया पंचसु दशसु कर्मभूमिसु । दया सहीसु- धर्मो दया सख्यं ईश इव-दया सहितासु वा । उ पंचसु - विदेहभूमिसु पंचसु ध्रुवो धर्मसूत्रक एव चतुर्थः कालः समयः । दशसु - पंचभरत पंचैरावतेषु । कालावेक्खए - वर्तमान (ना) सर्पिणी कालापेक्षया । पुनः देवसामि - प्रधानामराणां त्वं स्वामी । वत्ताणुठाणे - कृषि पशुपालन वारिणध्या च वार्ता । खत्तथनुक्षत्रदण्डनीति । परमपत्तु - परमा उत्कृष्टा गणेन्द्रा ऋषभ - सेनादयस्तेषां परम पूज्यः " ॥ दूसरी कृति समकितरास है, जो हिन्दी गुजराती मिश्रित काव्य-रचना है। इस ग्रन्थकी पत्र संस्था ८ है, और यह ग्रन्थ ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वती-भवन झालरापाटन के शास्त्रभण्डारमें सुरक्षित है। इस ग्रन्थमें सम्यक्त्वोपादक आठ कथाएं दी हुई हैं, और प्रसंगवश अनेक अवान्तर कथा भी यथा स्थान दी गई हैं । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ संस्कृत सम्यक्त्व कौमुदी का गुजराती पद्यानुवाद है। इसकी रचयित्री श्रार्यारत्नमती है । ग्रन्थमें उन्होंने अपनी जो गुरु परम्परा दी है वह इस प्रकार है : मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वय सरस्वतिगच्छ में भट्टारक पद्मनन्दी, देवेन्द्रकोर्ति, विद्यानन्दी, महिलभूषण, लक्ष्मीचन्द, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, श्रार्या चन्द्रमती, विमलमती और रत्नमती । ग्रन्थका आदि मंगल इस प्रकार है: इस गुरु परम्परामें भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति सूरतकी गड़ीके भट्टारक थे । विद्यानन्द सं० १५५८ में उस पट्ट पर विराजमान हुए थे । मल्लभूषण सागवाड़ा या मालवाकी गद्दीके भट्टारक थे | लक्ष्मीचन्द और वीरचन्द्र भी मालवा या सागवाड़ा के श्रास-पास भट्टारक पद पर श्रासीन रहे हैं। ये ज्ञानभूषण तत्त्वज्ञान तरंगिणी के कर्तासे भिन्न हैं। क्योंकि यह भ० वीरचन्द्रके शिष्य थे । और तत्त्वज्ञान तरंगिणीके कर्ता भ० भुवनकीर्तिके शिष्य थे । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527330
Book TitleAnekant 1954 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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