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________________ अनेकान्त २६] [वर्ष १३ २-चतुर्थ महाराजा शांति वर्मा, जो पृथ्वी रामके समान ही पुण्यात्मा महापुरुषोंके उत्पन्न करनेका भी सौभाग्य प्राप्त जैन धर्मके उपासक थे इनकी रानी चांदकब्वे भी जिन- हुआ है, जिन्होंने संसारके दुःखी जीवोंके दुःखोंको दूर करने धर्मकी परम उपासिका थी। शांति वर्माने सन् १८१ के लिये भोग-विलास और राज्यादि विभूतियोंको छोड़कर (वि० सं० १०३८) में सोन्दत्तिमें जिनमन्दिरका प्रात्म-साधना द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करनेका प्रयत्न किया निर्माण कराया था और ११० महत्तर भूमि राजाने है। अनेक स्त्रियोंने पार्यिकानोंके व्रतोंको धारणकर प्रात्म और उतनी ही भूमि रानी चांदकव्वेने बाहुबली देवको साधनाकी उस कठोर तपश्चर्याको अपनाया है और आत्माप्रदान की थी, जो व्याकरणाचार्य थे। नुष्ठान करते हुए मन और इन्द्रियोंको वशमें करनेका भी -देखो, सोन्दत्ति शिला ले. नं० १६०। प्रयत्न किया है। साथ ही, प्रागत उपसर्ग परीषहोंको भी ३-विष्णु वर्धनकी भार्या शान्तलदेवीने सन् ११२३ (वि० समभावसे सहन किया है और अन्त समयमें समाधि पूर्वक सं० १२३० में) गन्ध वारण वस्ति बनवाई। यह मार- शरीर छोड़ा। उन धर्म-सेविका नारियोंके कुछ उदाहरण इस सिंह माचिकब्वे की पुत्री थी और जैन-धर्ममें सुदृढ़ और प्रकार हैं:गान नृत्य विद्यामें अत्यन्त चतुर थी। (७) भगवान महावीरके शासनमें जीवंधर स्वामीको पाठों ४-सोदेके राजा की रानीने, कारणवश पतिके धर्म-परिवर्तन पत्नियोंने जो विभिन्न देशोंके राजाओंकी राजपुत्रियों थीं, कर लेने के बाद भी पतिकी असाध्य बीमारीके दूर होने पतिके दीक्षा लेने पर आर्यिकाके व्रत धारण किये थे। तथा अपने सौभाग्यके अक्षुण्ण बने रहने पर अपने (२) वीरशासनमें जम्बू स्वामी अपनी तात्कालिक परिणाई नासिका भूषण (नथ) को, जो मोतियोंका बना हुआ हुई आठों स्त्रियोंके हृदयों पर विजय प्राप्तकर प्रातःकाल था, मेचकर एक जैन-मन्दिर बनवाया था और सामने दीक्षित हो गए। तब उनकी उन स्त्रियोंने भी जैनएक तालाब भी जो इस समय 'मुत्तिन कैरे' के नामसे दीक्षा धारण की। प्रसिद्ध है। -पाहव मल्ल राजाके सेनापति मल्लयकी पुत्री प्रतिमन्वेने, ) चंदना सतीने, जो वैशाली गणतंत्रके राजा चेटककी पुत्री जो जैनधर्मको विशेष श्रद्धालु और दानशीला थी, उसने थी, श्राजीवम ब्रह्मचारिणी रहकर, भगवान महावीरसे चांदी सोनेको हजारों जिन प्रतिमाएं स्थापित की और दीक्षित होकर आर्यिकाके व्रतोंका अनुष्ठान करती हुई लाखों रुपयेका दान किया था। महावीरके तीर्थमें छत्तीस हजार आर्यिकाओंमें गणिनीका ६-"होयसल नरेश बल्लाल, बल्लाल द्वितीयके मन्त्री पद प्राप्त किया था। चन्द्रमौली वेदानुयायी ब्राह्मण थे। परन्तु उनकी पत्नी (१) मयर ग्राम संघकी आर्यिका दमितामतीने कटवप्र गिरि 'प्राचियक्क' जिनधर्म परायणा थी और वीरोचित पर समाधिमरण किया। सान-धर्ममें निष्ठ थी, उसने बेल्गोलमें पार्श्वनाथ वस्ति : था, उसन बल्गालम पाश्वनाथ वास्त- (१) नविलूरकी अनंतमती-गतिने द्वादश तपोंका यथाविधि का निर्माण कराया था। अनुष्ठान करते हुए अन्तमें कटवा पर्वत पर स्वर्गलोक-देखो, श्रवण बेलगोल लेख नं. ४६४ - का सुख प्राप्त किया। जबलपुरमें 'पिसनहारीकी मडिया' के नामसे एक जैन (६) दण्ड नायक गणराजकी धर्म-पत्नी लक्ष्मी मतिने, जो मन्दिर प्रसिद्ध है जिसे एक महिलाने आटा पीस-पीसकर बड़े सती, साध्वी, धर्मनिष्ठा और दानशीला थी, और भारी परिश्रमसे पैसा जोड़ कर भक्रिवश अपने द्रव्यको सत्कार्यमें लगाया था। आज भी अनेक मंदिर और मूर्तियाँ मूलसंघ देशीगण पुस्तकगच्छके शुभचन्द्राचार्यकी शिष्या तथा धर्मशालाएँ अनेक नारियोंके द्वारा बनवाई गई हैं, थी, उसने शक सं०१०४४ (वि० सं०११७६) में सन्यास विधिसे देहोत्सर्ग किया था। जिनका उल्लेख लेख वृद्धिके भयसे नहीं किया है। इस प्रकारके सैकड़ों उदाहरण शिलालेखों और पुराण ग्रंथोंमें उपलब्ध होते हैं, जिन सबका संकलन करनेसे एक कुछ उन्लेख पुस्तकका सहज ही निर्माण हो सकता है। प्रस्तु, यहाँ लेख नारीको तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलभद्र और अन्य अनेक वृद्धिके भयसे उन सभीको छोड़ा जाता है।. नारियों के Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.lainelibrary.org
SR No.527330
Book TitleAnekant 1954 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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