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________________ ३६ अनेकान्त [ वर्ष १३ था (ये फैले थे) उस समय ये स्वतन्त्र थे। जब इनमें परस्पर सुख-शान्तिसे जीवन यापन करते हुए राज्य कर रहे थे तब मतभेद और द्वन्द होने खगे तब इन्होंने यह उचित समझा चोल और पाण्ड्य राजा इनपर बार-बार आक्रमण करने कि किसी प्रधानका निर्वाचन कर लिया जाय, जो उनमें लगे किन्तु वे कुरुम्बोंको परास्त करने में असमर्थ रहे, क्योंकि ऐक्य स्थापित कर सके । अतः अपनेमें से एक बुद्धिमान नेता- कुरुम्बं गण वीर थे और रणाणमें प्राण विसर्जन करने की को उन्होंने कुरुम्ब-भूमिका राजा मनोनीत किया, जो कमण्ड पर्वाह नहीं करते थे। अपनी स्वतन्त्रताको वे अपने प्राणोंसे कुरुम्ब-प्रभु या पुलल राजा कहलाने लगा। अधिक मूल्यवान समझते थे। कई बार तो ऐसा हुआ है कि कुरुम्ब-भूमि (जो टोण्डमण्डलम्के नामसे प्रसिद्ध है) आक्रमणकारी राजा पकड़े जाकर पुरलदुर्गके सामने पद्.. प्रदेशमें वह क्षेत्र सम्मिलित है, जो नेल्लोरमें प्रवाहित नदी शृखलाओंसे काराबद्ध कर दिये गये। पेन्नार और दक्षिण भारकटकी नदी पेनारके मध्यकी भूमिका इन वीर कुरुम्बोंके इतिहासका अभी तक आवश्यक है। उस कुरुम्ब प्रभुने अपने राज्यको चौवीस कोट्टम् या अनुसंधान नहीं हुआ है और इनके सम्बन्धमें अनेक विवरण जिलोंमें विभाजित किया, जिनमें प्रत्येकके मध्य एक-एक दुर्ग तामिलके संगम साहित्य और विशेषकर शैवमतके तामिल था और जो एक-एक राज्यपालक अधिकारमें था । इन ग्रंथों में उपलब्ध होते हैं। यद्यपि ये शैवग्रन्थ अपने मतकी कोहम् ( जिलों ) में ७६ नाडु या ताल्लुके (Taluks) अतिशयोक्कियोंसे ओत-प्रोत हैं तो भी इनमें ऐसी अनेक बनाए गए। एक-एक जिलेमें एकसे पांच तक नाडु थे। बातें मिलती हैं जिनसे इतिहासकी किसी अंश तक ' पूर्ति नाडुओंके भी नागरिक विभाग किये गए, जिनकी कुल संख्या होती है। अब हम पाठकोंको उस साहित्यके उपलब्ध एक हजार नौ सौ था। कुरुम्ब प्रभुने 'पुरलूर' (पुलल या विवरणोंसे प्राप्त संक्षिप्त तथ्यके अनुसार कुरुम्बोंकी आगेकी पुज्हलुरदुर्ग) को अपनी राजधानी बनाई । मदरासपटम् वार्ता बताते हैं :ग्राम (आधुनिक मद्रास) और अनेक अन्य ग्राम इसी कोट्टम् चोल और पाण्ड्य राजाओंके बार-बारके आक्रमण असफन या जिलेमें थे। होते रहनेसे द्वषाग्नि और ईर्षा उत्तरोत्तर बढ़ती गई और उपरोक्न कोहम् या जिलोंमेंसे कुछके नाम ये हैं :- शैवमतके धर्मान्ध प्राचार्योंने जैन कुरुम्बोंके विरुद्ध पुरलूर (राजकीय दुर्ग,) कल्लटूर, आयूर, पुलियूर, चेम्बूर, द्वेषाग्निमें आहूति प्रदान करना प्रारम्भ कर दिया। उनके उतरीकाडु, कलियम् , वेनगुन, इकथूकोर्ट, पडुबूर, पट्टि- कथनसे अन्तमें 'श्राडोन्डई' नामक चोलनृपति, जो कुलोपुलम् , सालकुपम् , सालपाकम्, मेयूर, कडलूर, अलंपरि, सुग चोलराजाका औरसपुत्र था, उसने कुरुम्बराजधानी मरकानम् इत्यादि । 'पुरलूर' पर एक बहुत बड़ी सेना लेकर आक्रमण किया। उस समय देश-विदेशके वाणिज्य पर विशेष ध्यान दोनों श्रोरसे घमासान युद्ध हुआ और अनेक वीर आहतदिया गया और विशेषकर पोतायन (जहाजों) द्वारा व्यवसाय- निहत हुए, किन्तु आडोन्डई राजाकी तीन चौथाई सेनाके की अभिवृद्धि बहुत की गई, जिससे कुरुम्ब अति समृद्धि- खेत अाजानेसे उसके पाँव उखड़ गए और उसने अवशिष्ट शाली हो गए। सेनाके साथ भागकर निकटके स्थानमें आश्रय लिया (यह पुरलर राजनगरी में एक दि. जैन मुनिके पधारने और स्थान अब भी 'चोलनपेडू' के नामसे पुकारा जाता है)। उनके द्वारा धर्मप्रचार करनेकी स्मृतिमें एक जैन वसति शोकाभिभूत होकर उसने दूसरे दिन प्रातःकाल तंजोर लौट (मंदिर) उन कुरुम्बप्रभुने वहाँ बनवाई थी । सन् १८६० जानेका विचार किया। किन्तु रात्रिके एक स्वप्नमें शिवजीने के लगभग टेलर साहबने (ग्रन्थ ३) पुरलूरमें जाकर प्रगट होकर उन्हें आश्वासन दिया कि कुरुम्बोंपर तुम्हारी इस प्राचीन वसति और कई मन्दिरोंके भग्नावशेष देखे थे। पूर्ण विजय होगी। इस स्वप्नसे प्रोत्साहित हो वह पुनः उन्होंने लिखा है कि समय-समय पर अब भी जैनमूर्तियाँ रणक्षेत्रपर लौटा और कुरुम्बोंको परास्त कर कुरुम्ब नृपतिको धानके खेतोंसे उपलब्ध होती रहती हैं किन्तु जैनोंके विपक्षी तलवारके घाट उतार दिया और पुरलदुर्गके बहुमूल्य धातुके हिन्दू या तो उन्हें नष्ट कर देते हैं या उन्हें जमीन में पुनः कपाटोंको उखाड़कर तंजोर भेजकर वहांके शैवमन्दिरके गाड़ देते हैं। गर्भगृहमें उन्हें लगा दिया गया। इसके बाद क्रमसे अन्य जब कुरुम्ब लोग उत्तरोत्तर समृद्धि प्राप्त करते तथा अवशिष्ट तेईस दुर्गोंको भी जीतकर और उनके शासकोंका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527329
Book TitleAnekant 1954 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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