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________________ मद्रास और मयिलापुरका जैन-पुरातत्त्व (छोटेलाल जैन ) अभी जब मूडबिद्रीकी सिद्धान्तवसतिमें सुरक्षित आगम इसके निकटके कई अंचल और आस-पासके अनेक ग्राम एक ग्रन्थ (धवलादि) की एक मात्र प्रतियोंके फोटो प्राप्त करने समय संस्कृति और धर्मोके केन्द्र रह चुके हैं। के उद्देश्यसे दक्षिणकी यात्रा करनी पड़ी थी, वहां का कार्य कुरुम्ब-जाति समाप्त कर मैं 'सि तन्नवासल' सिद्धक्षेत्रके फोटो लेता हुश्रा कर्नल मेकेन्जीने हस्तलिखित प्रन्थों और लेखोंका बहुत मद्रास गया था। वहां 'दक्षिणके जैनशिलालेखोंका संग्रह' बड़ा संग्रह किया था, जो अब मद्रासके राजकीय पुस्तकालयमें नामका एक ग्रन्थ, जो कई वर्षोंसे वीरशासनसंघके लिए तैयार सुरक्षित है। इनका परिचय और विवरण टेलर साहबने सन् कराया जा रहा था, उसको शीघ्र पूर्ण करानेके लिये मुझे १८६२ में 'केटेलोगरिशोने अाफ़ अोरियन्टल मान्युस्कृप्ट्स वहां प्रायः एक मास ठहर जाना पड़ा। इस दीर्थ समयका इन दि गर्वन्मेंट लायब्ररी' नामक वृहद ग्रन्थमें प्रकाशित उपयोग मैंने मद्रास और उसके निकटवर्ती स्थानोंके जैन पुरा किया था। इनमें दक्षिण भारतके इतिहासकी प्रचुर सामग्री तत्त्वका अनुसन्धान करनेमें किया। उसीके फलस्वरूप जो है। कुरुम्ब जातिके सम्बन्धमें भी अनेक विवरण इसमें उपकिंचित् इतिहास मद्रासका मैं प्राप्त कर सका उसे भाज पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ। लब्ध हैं, उन्हींके आधारसे हम यहां कुछ लिख रहे हैं :मद्रास नगरका इतिहास मात्र तीन शताब्दी जीवन- कुरुम्ब-जातिके लोग भारतके अति प्राचीन अधिवासी कालके क्रमिक विकास ( वृद्धि ) का है। वर्तमानका विस्तीर्ण हैं और वे अपनी द्रविड़ जातीय वल्लवोंसे भी पूर्व यहां बसे यह नगर, जो सन् १६३६ में स्थापित हश्रा था, अंग्रेजोंके हुए थे। किन्तु परवर्ती कालमें ये दोनों मातियाँ परस्पर आगमनके सैकड़ों वर्ष पूर्व विभिन्न छितरे हुए ग्रामोंके रूपमें मिश्रित हो गई थीं। था, 'मद्रास' शब्दकी उत्पत्ति इन्हीं ग्रामों में एक ग्रामके नामसे भारतीय इतिहासमें कुरुम्बोंने उल्लेखनीय कार्य किये हई है जो 'मदासपटम्' कहलाता था, और जो 'चीनपटम्' हैं। अति प्रसिद्ध 'टोन्डमण्डलम्' प्रदेशका नाम, जिसकी ( वर्तमानका फॉर्ट सेंट जार्ज दुर्ग) के निकट उत्तरकी अोर राजधानी एक समय कांचीपुरम् थी, 'कुरुम्ब-भूमि' या तथा सैनथामी' (मयिलापुर) के उत्तर तीन मील पर था। 'कुरुम्बनाडु' था। सर बाल्टर ईलियट (सहायकग्रन्थ १,५) यह नगर बंगोपसागरके तट पर अवस्थित है और उपकूलके के अभिमतसे तो 'द्राविड़ देशके बहुभागका माम कुरुम्ब भूमि साथ साथ है मील लम्बा तथा तीन मील चौड़ा है, जिसका था और जिसका विस्तार कोरोमण्डलसे मलाबार उपकूल तक क्षेत्रफल प्रायः ३० वर्ग मील है। इसको संस्थिति समुद्ध- इस सम्पूर्ण प्रायोद्वीपके किनारे तक था। इस प्रदेशके पूर्व तल (Sea-level ) के बराबर है और इसका सर्वोच्च भागका नाम 'टोण्डमण्डलम्' तो तब पड़ा था जबकि चोलोंने प्रदेश समुद्रतटसे कुल २२ फीट ऊँचा है। इसे विजित किया था। इनके अभिमतसे चोलवंशके नृपति किन्तु इसके चारों ओरके प्रदेशोंका अतीत गौरव और करिकालने कुरुम्बोंको जीता था। इस प्रान्तका चौवीस जिलों ऐतिहासिक गुरुत्व तथा इसके कुछ भागों (जैसे ट्रिप्लिकेन, (कोट्टम् ) में विभाजनका श्रेय कुरुम्बों को है।" मयिलापुर और तिरुभोट्टियूर) और पल्लवरम् जैसे उप- गस्टव प्रापर्ट ( स० ग्र.२) साहबने इनकी व्युत्पत्ति, नगरोंने भूतकालमें जो महत्व प्राप्त किया था वह वास्तवमें को (कु)= पर्वत शब्दके वर्धित रूप 'कुरु' से की है। अस्तु, अत्यन्त चित्ताकर्षक है। मद्रासके निकटके अंचलोंमें अनेक कुरुव या कुरुम्बका अर्थ होता है पर्वतवासी। प्रागैतिहासिक अवशेष, प्रस्तरयुगकी समाधियों, प्रस्तरनिर्मित मूलतः ये यादववंशी थे जिन्होंने कौरव पाण्डव (महाशवाधार (कब) और पत्थरकी चक्रिया और अन्य पुरातत्त्वकी भारत ) युद्ध में भाग लिया था । तत्पश्चात् इनके वंशधर सामग्री प्राप्त हुई है, जो इतिहास और मानव-विज्ञानके विभिन्न क्षेत्रोंमें तितर-बितर हो गए थे। अति प्राचीन कालसे अनुसन्धाताओंके लिए बहुत ही उपयोगी है। ये नैनधर्मानुयायी थे। किसी समय कर्नाट देशसे इन ऐतिहासिक कालका विचार करने पर हम देखते हैं कि लोगोंने द्राविड देशमें 'टोएडमण्डलम्' तक विस्तार किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527329
Book TitleAnekant 1954 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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