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________________ ५६ ] 1 (५) त्रिलक्षणकदर्थन - यह ग्रंथ स्वामी पात्रकेसरीकारचा हुआ है | श्रवणबेलगोलके मल्लिषेणप्रशस्ति नामक शिलालेख नं० ५४ (६७), सिद्धिविनिश्चय-टीका और न्याय विनिश्चय-विवरणमें इसका उल्लेख है । वादिराजसूरिने न्यायविनिश्चय-विवरण में लिखा है 'त्रिलक्षणकदर्थने वा शास्त्रे विस्तरेण श्रीपात्रकेसरि-स्वामिना प्रतिपादनादित्यलमभिनिवेशेन ।' श्रावश्यक निवेदन - इन ग्रन्थोंके उपलब्ध होनेपर साहित्य, इतिहास और तत्वज्ञान विषयक क्षेत्रपर बड़ा प्रकाश पड़ेगा और अनेक उली हुई गुत्थियाँ स्वतः सुलझ जाएँगी । इसीसे वर्तमान में इनकी खोज होनी बहुत ही आवश्यक है । अतः सभी विद्वानोंको -- खासकर जैनविद्वानोंको इनकी खोजके लिये शीघ्र ही पूरा प्रयत्न करना चाहिये, सारे शास्त्र भण्डारोंकी अच्छी छान-बीन होनी चाहिये। उन्हें पुरस्कारकी रकमको न देखकर यह देखना चाहिये कि इन ग्रन्थोंकी खोज-द्वारा श्राचार्य श्री नमिसागरजीकी प्ररेणा आदिको पाकर वरसेवामन्दिरको उसके साहित्यिक तथा ऐतिहासिक कामोंके लिए जिन सज्जनोंसे जो सहायता प्राप्त हुई है लकी सूची निम्न प्रकार है: १००१) ना० प्यारे लालजी सर्राफ, सब्जी मंडी देहली ५५१ ) अखिल भा० दि० जैन केन्द्रीय महा समिति १००) लाला रतनलाल सुकमाल चन्दजी. मेरठ ५००) डा० उत्तमचन्दजी, अम्बाला छावनी (३००) लाला मोतीलाल जी, ६४ दरियागंज; देहली २०१) ला• खजान सिंह विमलप्रसादजी मंसूरपुर १०१ ) ला०] हरिश्चन्द्र जी, देहली सहादरा १०१) लाला होशयारसिंह शीतलप्रसाद जी मंसूरपुर १०१) धर्मपत्नी बा० शिखरचन्दजी देहली १०१) ला० रामप्रसाद जी पंसारी, देहली १०१) ला० ज्योतिप्रसाद श्रीपालजी टाइप वाले देहली १००) बा० नेमचन्द्र जी मंगलौर Jain Education International कान्त [ वर्ष १३ हम देश और समाजकी बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं। ऐसी सेवाओं का वास्तवमें कोई मूल्य नहीं होता -- पुरस्कार तो आदर-सत्कार एवं सम्मान व्यक्र करनेका एक चिन्ह मात्र है । वे तो जिस ग्रंथकी भी खोज लगाएंगे उसके 'उद्धारक' समझे जाएंगे । " जो सज्जन पुरस्कारके अधिकारी होकर भी पुरस्कार लेना नहीं चाहेंगे उनके पुरस्कारकी रकम साहित्यिक शोधखोजके विभाग में जमा की जायगी और वह उनकी श्रोरसे किसी दूसरे ग्रंथकी खोजके काममें लगाई जायगी। साथ ही उनका नाम उस ग्रन्थके 'उद्धारक' रूपमें प्रकाशित किया जायगा । वीर सेवामन्दिरको सहायता नोट - - दूसरे पत्र सम्पादकोंसे निवेदन है कि वे भी इस विज्ञप्तिको अपने-अपने स्त्रमें प्रकाशित करनेकी कृपा करें । जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर' १, दरियागंज, दिल्ली ८५) धर्मपत्नी लाला सुमेरचन्द्र जी खजांची देहली (५१) लाला जयन्तीप्रसादजी देहली २५) ला० रामकरनदासजी, बहादुरगंज मण्डी २५) ल० धूमसेन महावीरप्रसादजी कटरा सत्यनारायण देहली २५) श्रीमती राजकली देवी श्रम्बहटा ( सहारनपुर ) २५) ला० दांताराम जी, ७ दरियागंज देहली, २५) जा० रघुवीरसिंह जी, हादुरगंज मण्डी, फर्म ला० केदारनाथ चन्द्रभान जी २१) श्री विजयरत्न जी १०) अज्ञात, मार्फत ला० ज्योतिप्रसादजी टाइप वाले ५) श्रीमती तारादेवी ला० शिखरचन्दजी सब्जीमण्डी देहली For Personal & Private Use Only निवेदक राजकृष्ण जैन व्यवस्थापक वीरसेवा मन्दिर www.jainelibrary.org
SR No.527329
Book TitleAnekant 1954 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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