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भनेकान्त
[किरण १ मयिलमनगर उसीके निकट बसाया गया था ऐसा मालूम सैनथामी हाई रोडका था। ३८ वर्ष हुए उस स्थानसे धातुकी होता है और वर्तमान मयिलापुर वही दूसरा नगर है। एक जैन मूर्ति उन्हें प्राप्त हुई थी, किन्तु कुछ ही समय बाद
मुथु ग्रामनी स्ट्रीट और अप्पुमुडाली स्ट्रीट (मयिलापुर) वह चोरी चली गई। के सन्धिस्थलमें नारियल वृत्तोंके एक कुजमें पादड़ी एस.
इन उपयुक्त प्रमाणोंसे यह भली भांति सिद्ध हो जाता जेहास्टेनको सन् १९३१ में भूगर्भसे दो दिगम्बर जैन है कि मयिलापुरमें कई जैन मन्दिर थे। मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। वे दोनों मूर्तियाँ अब श्री एस० धनपालके गृह नं० १८ चित्राकुलम् इष्टवर स्ट्रीट (मयिला
मद्रासके निकट कांजीवरम् एक अति प्राचीन नगर पुर) में हैं (चित्र) इनमें एक मूर्ति ४१ इंच ऊंची है जिसके पैर
है । पल्लव-नरेशोंकी यह राजधानी थी। चतुर्थ शताब्दीसे खंडित हैं । वह सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की है । दूसरी
अष्टम शताब्दी तक दक्षिण भारतके इस प्रदेशमें पल्लवोंका
प्रचुर प्राबल्य था। कांजीवरम् 'मन्दिरोंका नगर' के नामसे ५३ इंच ऊँची छठे तीर्थकर पद्मप्रभ की है । दोनों ही १०वीं
प्रसिद्ध था और इससे जैनोंका सम्बन्ध अति प्राचीन कालसे ग्यारहवीं शताब्दी काल की हैं। इससे भी यह अनुमान होता
रहा है। इस नगरके तीन प्रधान विभाग थे- लघुकांजीवरम् है कि दशवीं शताब्दीमें उस स्थान पर कोई जैन मन्दिर
(विष्णुकांची), वृहत्कांजीवरम् (शिवकांची) और था। (स-ग्रन्थ १)
पिल्लयि पलयम् ( जिनकांची ) जो वस्त्रबपनका विशाल इस प्रकार हमें मयिलापुरमें १५वीं शताब्दीके पूर्वमें
केन्द्र है। कांचीके निकट पश्चिमकी ओर निरूपरूट्टिकुत्रम् दो जैनमन्दिरोंके अस्तित्वका पता चलता है। इनके अतिरिक
गाँव है जो एक समयके प्रसिद्ध जैन केन्द्रका स्मारक है। एक तीसरे मन्दिरका भी पता लगा है वह वर्तमानके
यहाँ दो भव्य जैन मन्दिर हैं-एक महावीर स्वामीका, दूसरा सैन्टथामी पारफनेज (अनाथालय) की भूमि पर था । वहाँ से
ऋषभदेवका । प्राचीन समयमें कौंजीवरम् जैन और हिन्दुओं कुछ वर्ष हुए एक मस्तक-विहीन दिगम्बरजैन मूर्ति प्राप्त
की उच्च शिक्षाओंका केन्द्र था। इसके सम्बन्धमें हम पूर्ण हुई थी जो 1८x१३॥ इंच है वह मूर्ति सन् १९२१ से
विवरण दूसरे लेखमें लिखेंगे। अभी तक विशप (पादड़ी) भवन (मयिलापुर) में है। चित्र । (स-ग्रन्थ ४, ५)
इसी प्रकार पल्लव कालमें,मामल्लपुरम् (महावल्लि एक समय पुर्तगाल-गवर्नर ( शासक ) का पुराना
पुरम् ) संस्कृति और धर्म जागृतिका केन्द्र था। महाबल्लिप्रासाद जहाँ था वहांकी सैनथामी अनाथालय की
पुरमकी एक प्राचीन जनश्रुतिसे यह निश्चयतः ज्ञात होता है अब भोजनशाला है । उसके ठीक पीछे की भूमिसे
कि यहांके अधिवासी कुरुम्ब जातिके लोग जैनधर्मानुयायी
थे। इस प्राचीन नगरके जैन ऐतिह्य पर भी मैं अनुसन्धान गत शताब्दीमें एक लेख युक्त श्वेत पाषाणकी जैनमूर्ति प्राप्त थे। इस हुई थी। जब यह जायदाद फ्रेनसिस्कन मिशनरीज ऑफ कर रहा हू। मैरीके अधिकारमें आई तब उन्होंने बह मूर्ति एक गड्ढे में इसी प्रकार महासके निकटके कई अन्य स्थानोंके दर्शन डाल दी थी। सन् १९२१ में फादर हास्टेनने इस मूर्तिके भी मैं कर पाया हूं जैसे-अकलंक वसति, पारपाक,म् असंअनुसन्धानके लिये उस स्थलको दो दो सप्ताह तक खनन कर- गलम्, और यहांके जैन मन्दिर और मूर्तियोंके फोटो भी मैंने वाया जिसमें एक सौ रुपये व्यय हुए और धनाभावके कारण लिये है। समय समय पर इनके सम्बन्धमें भी सचित्र लेख उस खुदाईको बन्द करना पड़ा।
प्रकट किये जायेंगे। सैनथामीचर्च के निकट जहाँ गूंगे-बहरोंका स्कूल है. वह नोट-मेरे लेखों में जो चित्र प्रगट किए जाते हैं वे सब मकान पहले श्री धनकोटिराज इंजीनियर विक्टोरिया वर्क्स, ब्लाक 'बीरशासनसंघ कलकत्ताके सौजन्यसे प्राप्त होते हैं।
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