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किरण १ ]
सेन्ट थामी स्कूलके मुख्य द्वार पर ले जाने वाली अंतिम सोपानके दक्षिण की ओरसे एक खंडित शिलालेख कुछ समय पूर्व प्राप्त हुआ था । यह प्रस्तर खण्ड ३६४१२ इंचका है और इस पर तामिल भाषा में निम्न लेख अति । है... (देखो चित्र ) (प्रथम पक्ति) * "उटपड नेमिनाथ स्वामिक (कु) (द्वितीय पंक्ति "कदुत्तोम इथे पलन्दी परा अनुवादक... ( इन सबके ) सहित हम नेमिनाथ स्वामी को प्रदान करते हैं । ( यह हस्ताक्षर हैं ) पलन्दीपराके । (देखो ० ४ और २)
इससे स्पष्ट विदित होता है कि मयिलापुरमें नेमिनाथ स्वामीका मन्दिर था और शिलालेखकी प्राप्ति स्थानसे यह निश्चितरूपसे मालूम होता है कि ठीक इसी स्थानके आसपास कहीं राचीन जैन मन्दिर था। इसकी पुष्टि करने वाले अनेक साहित्यिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं ।
१३ वीं शताब्दी के एक जैनकवि अविरोधि श्रज्हवरकी तामिलके १०३ पद्योंकी नेमिनाथकी स्तुति 'थिरुमुद्र अन्दथि' में उनके मविलापुर स्थित मन्दिरका प्रथम पथमें ही उल्लेख किया है। इस कविने 'नेमिनाथाष्टक' नामके एक संस्कृत स्तोत्रकी भी रचना की है।
१३ वीं शताब्दी के एक दूसरे ग्रन्थकार गुणवीर पंडितने 'सिम्मुख' नामक अपने तामिल व्याकरणको मथिलापुरके नेमिनाथको समर्पित करते हुए उसका नाम 'नेमिनाथम्' रखा 'था 'उधीसिपेवर' नामके एक जैन मुनिने अपने प्रत्य 'धिरुकलंचहम्' में मविलापुरका उल्लेख किया हैx |
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इस मथिलापुरके नेमिनाथको 'मविजविनाथ' अर्थात् मयिलापुरके नाथ भी कहते हैं । तामिलभाषाके अतिप्राचीन और सुप्रसिद्ध व्याकरण ‘नन्नुल' पर एक टीका है जो दक्षिण भारतमें आज भी प्रति सम्मानाई है। उसके रचयिता मंदि लापुरके नेमिनाथ स्वामीके बड़े भक्त थे । उन्होंने भक्तिवश अपना नाम हो 'मयिलयिनाथ' रख लिया था ।
अंग्रेजी जैनगजटके भूतपूर्व सम्पादक मद्रास निवासी श्री सी. एस. मल्लिनाथके पास तामिल लिपि में लिखा हुआ एक प्राचीन ताडपत्रोंका गुटका (संग्रहग्रन्थ) है जिसकी * नोट सकी असावधानीसे वह शिलालेख उल्टा छप गया है।
x संस्कृत स्थविर शब्दके प्राकृतरूप थविर और थे होते हैं जिसका अपभ्रंश थेवर है । स्थविर वृद्ध साधुको कहते हैं।
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मद्रास और मविलापुरका जैन पुरातत्व
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कुल पत्रसंख्या २१३ है । प्रत्येक पत्र १४३४१ ३ इंच है । और प्रत्येक पत्र ७ पंक्रियां हैं। इस संग्रह के ६१ पत्र पर एक 'नेमि नाथाष्टक' संस्कृत स्तोत्र है उसमें ( देखो, परिशिष्ट पृ० ४१) इन मथिलापुर के नेमिनाथका और उस मन्दिरका सुन्दर वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र में मन्दिरकी स्थिति भीमसागरके मध्य जिली है इससे यह विदित होता है कि समुहके उस भाग ( वंगोप सागर) का नाम भीमसागर था । किन्तु यह भी निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता; क्योंकि इसकी पुष्टि के लिये अन्य प्रमाणों के अनुसन्धानकी आवश्यकता है। या यह भी हो सकता है कि वह मन्दिर भीमसागर नामके किसी विशाल जलाशय के मध्य में स्थित रहा हो, जैसाकि पावापुर ( बिहार ) में भगवान महापोरका जलमन्दिर ( निर्वाणक्षेत्र ) है और कारक के निकट वरंगलका जैनमन्दिर । इम्पीरियल गजेटियर के जिल्द xvi में एक नक्शा है जिसमें कपलेश्वर स्वामी मन्दिरके पास भीमनपेट है। वहाँ एक बड़ा तलाब भी है । क्या भीमसागर यहाँ था ? इस प्रश्न पर भी विचार करना है ।
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इस समय पश्चिम 'टिन्दिवनम्' तालुक 'चित्तामूर' ग्राम में नेमिनाथका एक मन्दिर है। जन ति है कि नेमिनाथ स्वामीकी वह मूर्ति मयिलापुरसे लाकर यहाँ विराजमान की गई थी क्योंकि समुदके बदधानेसे मन्दिर जलमग्न हो
चला था ।
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दक्षिण धरकार जिलेका ( दिगम्बर जैनोंका मुख्य ) केन्द्रस्थान 'चित्तामूर' (सितामूर ) है वहां एक भव्य जैन मन्दिर है, और तामिल जैन प्रान्तके भट्टारकजीका मठ भी है मन्दिरके उत्तरभागमें नेमिनाथस्वामीकी वह मनोशमूर्ति विराजमान है । यह मूर्ति मयिलापुर से वहां लाई गई थी । इस घटनाको पुष्टि (ग्रं० ३,६) से भी होती है I प्रन्थ नं० २, से मालूम होता है कि एक वार किसी साधुझे स्वप्न हुआ कि वह नगर (मथिलापुर) शीघ्र समुद्रच्छन्न हो जायगा । अस्तु, यहांकी मूर्तियों को हटाकर समुद्रसे कुछ दूर मयिलमनगर में ले आये और वहाँ अनेक मन्दिरोंका निर्माण हुआ । कुछ कालबाद दूसरी वार सावधान वाणी हुई कि तीन दिनके भीतर मयिलमनगर जल-मग्न हो जायेगा, इसलिए जैनों द्वारा वे मूर्तियाँ और भी दूर स्थानान्तरित कर दी गई। मालूम होता है कि इसी समय नेमिनाथकी वह मूर्ति वित्तारमें पथराई गई थी। प्रथम प्राचीन नगर मयिलापुरके डूब जानेके बाद यह द्वितीय
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