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________________ बिषय-सूची , चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन-[ सोमसेन ३२६ ५ वैभवको शृङ्खलाएँ (कहानी) २ मूलाचारको मौलिकता और उसके रचयिता [ मनु 'ज्ञानार्थी' साहित्यत्न . ३४३ [पं० हीरालालजी सिद्धान्त शास्त्री ३३० ६ धर्म और राष्ट्रनिर्माण-। प्राचार्य तुलली ३४ ३ मार्य और द्रविड़ संस्कृतिक सम्मेलनका उपक्रम- ७ बंकापुर--- [पं० के० भुजवलीजी शास्त्री ३५३ [बा. जयभगवानजी एडवोकेट ३३१ ८ मूलाचार संग्रहग्रन्थ न होकर प्राचाराङ्गके रूपमेमौलिक ४ युगपरिवर्तन (कविता) ग्रन्थ है-[पं० परमानन्द शास्त्री ३५५ [ मनु 'ज्ञानार्थी' साहित्यरत्न . विविध विषय महावीर जयन्ती आदि समाजसे निवेदन 'अनेकान्त' जेन समाजका एक साहित्यिक और ऐतिहासिक सचित्र मासिक पत्र है । उसमें अनेक खोज पूर्ण पठनीय लेख निकलते रहते हैं । पाठकोंको चाहिये कि वे ऐसे उपयोगी मासिक पत्रके ग्राहक बनकर, तथा संरक्षक या सहायक बनकर उसको समर्थ बनाएं । हमें केवल दो सौ इक्यावन तथा एक सौ एक रुपया देकर संरक्षक व सहायक श्रेणी में नाम लिखाने वाले दो सौ सज्जनोंकी आवश्यकता है। आशा है समाजके दानी महानुभाव एक सौ एक रुपया प्रदानकर सहायकश्रेणीमें अपना नाम अवश्य लिखाकर साहित्य-सेवामें हमारा हाथ बंटायंगे। मैनेजर-'अनेकान्त' । .. १ दरियागंज, देहली . विवाहमें दान अमृतसर निवासी ला० मुन्नीलालजी जैनने अपने सुपुत्र चि० दर्शनकुमारके विवाहोपल चयमें १०१) रु. दानमे दिये हैं। -जयकुमार जैन अनेकान्तको सहायताके सात मार्ग (1) अनेकान्तके 'संरक्षक' तथा 'सहायक' बनना और बनाना । (२) स्वयं अनेकान्तके ग्राहक बनना तथा दूसरों को बनाना। (३) विवाह-शादी आदि दानके अवसरों पर अनेकान्तको अच्छी सहायता भेजना तथा भिजवाना । (४) अपनी ओर से दूसरोंको अनेकान्त भेंट-स्वरूकर अथवा फ्री भिजवाना: जैसे विद्या-संस्थाओं. लायबेरियों, सभा-सोसाइटियों और जैन-अजैन विद्वानों।। . (१) विद्यार्थियों आदिको अनेकान्त अर्ध मूल्यमें नेके लिये २५),५०) आदिकी सहायता भेजना । २५ की सहायतामें १० को अनेकान्त अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा। (६) अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे ग्रन्थ उपहारमें देना तथा दिलामा। (७) लोकहितकी साधनामें सहायक अच्छे सुन्दर लेख लिखकर भेजना तथा चित्रादि सामग्रीको प्रकाशनार्थ जुटाना । सहायतादि भेजने तथा पत्रव्यवहारका पता:...नोट-दस ग्राहक बनानेवाले सहायकोंको मैनेजर 'अनेकान्त' -. --'अनेकान्त' एक वर्ष तक भेंटस्वरूप भेजा जायगा। वीरसेवामन्दिर, १, दरियागंज, देहली। Jain Education International For Personal & Private Use Only www ainelibrary.org
SR No.527325
Book TitleAnekant 1954 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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