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________________ ३१८] अनेकान्त [किरण १० बीमामें मन्दविषसे या आकस्मिक कारणोंके बहाने जानें किसी देशकी या मानव समाजकी गरीबीके ये दस तक ले ली जाती हैं। पर यह व्यक्तिवादका अनिवार्य कारण हैं। हमें इन सभी कारणोंको दूर करना है। पाप बना हुआ है। यह भी अनुत्पादकार्जन है। किसी एक ही कारणको दूर करनेकी बात पर जोर देने से, विज्ञापनबाजी और दलालीके भी बहुतसे काम अनु एक कारण तो दूर किया जाता है पर दूसरे कारणको त्पादकार्जन हैं । इससे उत्पादन तो नहीं बढ़ता, सिर्फ बुला लिया जाता है। जैसे साम्यवादी लोग विषम व्यक्तिवादकी लूट खसौटमें ये बिचभैये भी कुछ लूट खसोट वितरणको हटानेकी बात कहकर अल्पोत्पादक श्रमको लेते हैं। यह भी व्यक्तिवादका अनिवार्य पाप बना हुआ है। इतना अधिक बुला लेते हैं कि विषम वितरणकी गरीबीसे ___यह सब अनुत्पादकार्जन है इससे देश गरीब ही र सेकड़ों गुणी गरीबी अल्पोत्पादकश्रमसे बढ़ जाती हैं। सक होता है। श्रावश्यक सीमित कलाकृतियाँ श्रानंद पैदा इसलिये गरीबीके दसों कारणोंको दूर करना चाहिये और करनेके कारण अनुत्पादकार्जनमें न गिनी जायंगी। एक कारण हानेका विचार करते समय इस बातका ख्याल रखना चाहिये कि उससे गरीबीका दूसरा कारण १०. अनुचित वितरण-मेहनत और गुणके अनु उभड़ न पड़े या इतना न उभड़ पड़े कि एक तरफ जितनी सार फल न मिलना, यह अनुचित वितरण है । इससे गरीबी दूरकी जाय दूसरी तरफसे उससे अधिक गरीबी एक तरफ मुफ्तखोरी विलास आदि बढ़ता है दूसरी तरफ , अनुत्पादहीनता बढ़ती है। बेकारी शोषण आदि इसीके दुर्भाग्यसे इस समय देशमें गरीबीके सब कारणों पर परिणाम हैं। इसे ही जीवादका पाप कहते हैं। जो कि विचार करने वाले राजनीतिक लोगोंकी कमी है। किसी व्यक्तिवादका एक रूप है। इससे वेकारी फैलती है। एक दो कारणों पर जोर देनेवाले तथा दूसरे कारणोंको मजदूरोंमें उत्साह नहीं होता, 'इससे उत्पादन रुकता है उभाड़ने वाले कार्यक्रमही यहाँ चल रहे हैं। यह देशका और विषम वितरणसे एक तरफ माल सड़ता है दूसरी दुर्भाग्य है । इस दुर्भाग्यको दूर करनेके लिये सर्वतोमुख तरफ मालके लिये लोग तड़पते रहते हैं इस प्रकार इससे . दृष्टिसे, विवेकसे और निरतिवादसे काम लेना चाहिये । देश कंगाल होता है। -'संगम' से वीरसेवामन्दिरका नया प्रकाशन । पाठकोंको यह जानकर अत्यन्त हर्ष होगा कि आचार्य पूज्यपादका 'समाधितन्त्र और इष्टोपदेश' नामकी दोनों आध्यात्मिक कृतियाँ संस्कृतटीकाके साथ बहुत दिनोंसे अप्राप्य थी, तथा मुमुक्षु आध्यात्म प्रेमी महानुभावोंकी इन ग्रन्थोंकी मांग होनेके फलस्वरूप वीरसेवामन्दिरने समाधितन्त्र और इष्टोपदेश' नामक ग्रन्थ पंडित परमानन्द शास्त्री कृत हिन्दीटीका और प्रभाचन्द्राचार्यकृत समाधितन्त्र टीका और आचार्यकल्प पंडित आशाधरजी कृत इष्टोपदेशकी संस्कृतटीका भी साथमें लगा दी है। स्वाध्याय प्रेमियोंके लिये यह ग्रन्थ खास तौरसे उपयोगी है। पृष्ठ संख्या सब तीनसौ से ऊपर है । सजिन्द प्रतिका मूल्य ३) रुपया और विना जिन्दके २॥) रुपया है। वाइडिग होकर ग्रन्थ एक महीनेमें प्रकाशित हो जायगा । ग्राहकों और पाठकोंको अभीसे अपना आर्डर भेज देना चाहिये। - मैनेजर-वीरसेवामन्दिर, १दरियागंज, देहली Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527324
Book TitleAnekant 1954 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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