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________________ किरण.] समयसारके टीकाकार विद्वद्वर रूपचन्दजी [२३१ - शिष्य परम्परा-. १२ व असोजबदि (स्वयं लिखित प्रति यति बालचन्द्रजीके संग्रहमें, समयसार मूलकी भी संवत् १७६३ में रूपचन्द्र महोपाध्याय रूपचन्द्रजीकी शिष्यपरंपरामें शिवचं जीकी लिखित प्रति उनके संग्रहमें हैं) (६) लगुस्तक्टदजी आदि अच्छे विद्वान होगये हैं। श्राज भी खरतरगच्छ ब्वा सम्बत् १७६८ (७) मुहू तमणिमाला (पत्र ६६ ग्रन्थ के भट्टारक बीकानेर गद्दीके श्रीपूज्य विजयेन्द्रसूरिजी १८६१) सम्बत् १८०१ मिगसरसुदी १ जोशी रामकिशनइनकी ही विद्वद शिष्य परंपराके प्रतीक हैं। चित्तौड़के के पुत्र बच्छराजके लिए रचित ।) (८) गौतमीय काव्य, पति बालचंदजी भी बड़े सजन व्यक्ति हैं। ग्वालियरमें सम्बत् १८०७ जोध पुर रामसिंह राज्ये रचित । (6) रामचन्द्रजीकी शिष्यं पपंपरा चल रही है। जिनका संग्रह भक्तामर टब्बा, सम्बत् १८११ (कालाऊनामें, शिष्य लश्करके श्वेताम्बर जैन मन्दिरमें रक्खा हुआ है। शिष्य पुण्यशील, विद्याशीलके आग्रहसे रचित (10) कल्याण. परंपराका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-रूपचन्दजीने मन्दिर टब्बा सम्बत् १८११ कालाऊनामें। अपने ग्रंथोंमेंसे कई ग्रन्थ स्वशिष्य पदमा और वस्ताके (१) 'दुरियर' वीरस्तोत्र बालापबोध, लेखन संवतू लिये बनाये ऐसा उल्लेख किया है। उनके दीक्षा नाम पुण्य १८.३ वीलाढा 'पत्र' (१२) चित्रसेन पदमावतीशील विद्याशील था। इनमेंसे पुण्यशील रचित ज्ञेय चतुविंशतिस्तवन मुनि विनयसागरजी ने प्रकाशित किये चौपाई सम्बत् १८१४ पौह सुदी १४ बीकानेर (१३ चतु विंशति जिन स्तुति पंचाशिका, संवत् १८१४ माघवदी हैं, जिनकी प्रस्तावमा मैंने लिखी है। ज्ञानानंद प्रकाशन नामक आपके ग्रन्थकी अपूर्ण प्रति चित्तौड़के यति बामचं बीकानेर (१४) गुणमाला प्रकरण, संवत् १८१७ जेसलदजीके संग्रह में अभी अवलोकनमें भाई जिसकी पूर्ण प्रति मेर । (११) साधुसमाचारी सम्वत् १८१६ (यह कल्पसूत्र बालावबोधके अन्तरगत ही संभव है। (१६) प्राबू तीर्थप्राप्त करना आवश्यक है। यात्रा स्तवन संवत् १८२१ प्राचार्य जिनलाभसरिके साथ . पुण्यशीलके शिष्य समयसुन्दर उनके शिष्य उपाध्याय - ___८५ मुनियों के साथ यात्रा (१७) हेमीनाममाला भाषाटीका शिवचंद्रभी बड़े अच्छे विद्वान हो गये हैं। जिनके रचित (६ कांड) सम्वत् १८२२ पौह सुदी ३ कालाउना प्रद्य म्नलीलाप्रकाशकी प्रति भी अपूर्ण व त्रुटित अवस्था (मुणोतसूरतरामके लिये) (१८) फलौदी पार्श्वस्तवन, में प्राप्त हुई है। इसकी भी पूरी प्रति प्राप्त होनी आवश्यक सम्बत् १८२३ मिगसर सुदी ८ (१६) अल्पावहुत्व स्तवन है। आपके रचित ऋषिमण्डलपूना प्रादि प्रकाशित हो सम्बत् १८२३ कालाऊनामें लिखित प्रति (२१) शत श्लोकी चुकी हैं शिवचंद्रजीके शिष्य रूपचंद्रजी अच्छे विद्वान थे, टब्बा १८३, मिगसरसुदी १० पानी । (२२) सन्निपात जिनके रचित कई ग्रंथ प्राप्त हैं। रामचंद्रजीके शिष्य कलिका टब्बा सम्वत् १८३१ माघसुदि १, पाली। उस्बराजके शिष्य नेमचंद्रजीथे। जिनके शिष्य यति श्याम (२३) सिद्धान्तचन्द्रिका सुबोधिकावृत्ति (पत्र १२४) साबजीका उपाश्रय जयपुरमें है। इनके ही शिष्य विजयेन्द्र सम्वत १८३४ से पूर्व (सम्वत् है पर स्पष्ट नहीं हो पाया। सरिजी वर्तमान बीकानेर शाखाके श्री पूज्य हैं। शिवचंद्र (२४) कल्पसूत्रवालाववोध (२५) वीर भायु ७२ वर्ष बीके दूसरे शिष्य ज्ञान विशालजीके शिष्य अमोलकचंद और चद आर स्पष्टीकरण, सम्वत् १८३४ से पूर्व (२१)नेमि नवरसा(२७) उनके शिष्य विनयचन्द्र हुए । जो सम्बत् १९४१ तक गौदी छंद (गाथा १३६) (२८) प्रोसवानरास गा० १५४ विद्वान थे चित्तौड़के यति बालचंद्रजी उन्हींके प्रशिष्य (२६) नयनिक्षेपस्तवन गा०३२(३०)सहस्रकूटस्तवन । होंगे। अब महोपाध्याय रूपचन्द्रजीकी रचनाओंकी सूची महोपाध्याय रूपचन्द्रजीको रचनात्राका सूचा १७(३१)विवाहपडल (३२) वीर पंचकल्याणक स्तवन आम्दानुक्रमसे नीचे दी जा रहीं हैं (३३) स्तवनावली (३४) वैराग्य समाय(३५)साध्वाचार (१) समुद्रबद्ध कवित्त सम्बत् १७६७ विल्हावास में षटत्रिंशिका (३६) पारस्तवन सटीक (३७ श्रतदेवी रचित (२) जिनसुखसूरि मजलस सम्बत् १७७२ (३) स्तोत्र (श्लोक १६) (३८) विज्ञप्ति द्वात्रिंशिका गा० ३३ शतकत्रय बालावबोध, संबत् १७८८ कार्तिक वदि १३ (३६) ऋषभदेव स्तोत्र (४०) कुशजसूरि अष्टक आदिमोजत् (७) अमरूतक बालावबोध, सम्बत् १७६१ असो- अभी जयपुरके यति श्यामलालजीका संग्रह देखना दिन सोजत (१ समयसार बालावबोध सम्बत् १.. और बाकी है। तथा चित्तौड़ वाले यति बाबचन्द्रजीके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527321
Book TitleAnekant 1953 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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