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________________ . श्रीबाहुबलि-जिनपूजाका अभिनन्दन मुख्तार जुगलकिशोर द्वारा नवनिर्मित यह पूजा, जो कि पूजा साहित्यमें एक नई चीज है, जबसे पहली बार गत मई मासकी अनेकान्त किरण नम्बर १२ में सामान्य रूपसे प्रकाशित हुई है तभीसे इसको अच्छा अभिनन्दन प्राप्त हो रहा है। यही कारण है कि.पुस्तकके रूपमें छपनेसे पहले ही इसकी प्रायः दो हजार प्रतियोंके ग्राहक दर्ज रजिस्टर हो गये थे, जिनमेंसे १५०० के लगभग प्रतियोंका श्रेय श्री जयवन्ती देवी और उसकी बुना गुणमालादेवीको प्राप्त है, जिन्होंने कुछ स्त्रियोंके परिचयमें इस पूजाको लाकर उनसे इतनी प्रतियोंकी बिना मूल्य वितरणके लिये खरीदारीकी स्वीकृति प्राप्त की। अब तो कुछ संशोधनके साथ अच्छे सुन्दर आर्ट पेपर पर मोटे अक्षरों में पुस्तकाकार छप जाने और साथमें श्री गोम्मटेश्वर बाहुबली फोटोचित्र रहनेसे इसका आकर्षण और भी बढ़ गया है और इसलिये जो भी इसे देख सुन पाता है वही इसकी ओर आकर्षित हो जाता है। पं० श्रीकैलाशचन्दजी शास्त्री बनारसने तो प्रथम बार सुनकर ही कहा था कि यदि जैन पूजाओंको इस प्रकारके संस्कारोंसे संस्कारित कर दिया जाय तो कितना अच्छा हो ।' अस्तु, अभिनन्दनके कुछ नमूने नीचे दिये जाते हैं: १. प्राचार्य नमिसागरजीको 'यह पूजा अत्यन्त प्रिय लगी है। और उन्होंने हिसारसे पं० सूर्यपालजीके पत्र द्वारा अपना आशीर्वाद भी भेजा है। २. मुनि श्री समन्तभद्गजीने इसे साद्यन्त पढ़कर अपना भारी प्रानन्द व्यक्त करते हुए मुख्तारजीके लिये कुछ मंगल भावना भी भेजी है, जैसा कि बाहुबलि ब्रह्मचर्याश्रमके मन्त्रीकी ओरसे लिखे गये पत्रके निम्न अंशसे प्रकट है ___ 'वह पूज्य श्रीने आद्योपांत पढ़ी । अापका रचा हुश्रा सुन्दर सरस काव्य, भक्तिरससे भरा हुआ पढ़कर उनको बहुत प्रानंद हुश्रा । इस कवित्व शक्तिकी देन आपको प्रकृतिने प्रदान की है । ऐसे ही जिन भक्ति बढ़ानेके कार्य में ही उसका अधिकाधिक विकास व उपयोग होता रहे यह मंगल भावना साथ भेजी है।' ३. 'पं० अमृतलालजी दर्शन-साहित्याचार्य बनारससे लिखते हैं-'यह पुस्तक लिखकर पूजासाहित्यमें आपने एक नई चीज. उपस्थित की, इसमें कोई सन्देह नहीं । पुस्तक बहुत ही सरस और सरल है। पुस्तक प्रारम्भ करने पर बन्द करनेकी इच्छा नहीं होती। यह पुस्तक प्रत्येक जैनको अपने संग्रहमें रखनी चाहिये । पुस्तककी छपाई सफाई बहुत ही सुन्दर है और ) ( दो पाने ) मूल्य भी बहुत कम है। इसके लिये हम अापका अभिनन्दन करते हैं। ४. सम्पादक 'जन सन्देश' पुस्तकको समालोचना करते हुए लिखते हैं-'निश्चय ही इस नये रूपमें पूजनको समाजके सामने रखने में माननीय मुख्तार साहबको बहुत सफलता मिली है। पाठकोंसे यह पुस्तक मंगाकर पढ़नेका और यह पूजन करनेका अनुरोध करेंगे।' ५. डा० श्रीचन्दजी जैन संगल एटा, जिन्होंने पहिले ही इस पूजाको पसन्द करके फ्री वितरणके लिये ५०० कापीका आर्डर दिया था, लिखते हैं कि-'पुस्तक बहुत अच्छी छपी है और सुन्दर है । अब आप महाबीर स्वामीको भी ऐसी एक पूजा बनाकर छपवाइये .' .बा. प्रद्य म्नकुमारजी संगलने जब इस पूजाको पढ़ा तो उन्हें वह बहुत ही रुचिकर प्रतीत हई और , इसलिये उन्होंने अपने इष्ट मित्रादिको वितरण करनेके लिये उसकी १०० कापी खरीदी परंतु इतनेसे ही उनकी तृप्ति नहीं हुई और इसलिये श्री महावीरजी की यात्राको जाते हुए वे १०० कापी वितरणको ले गये और यात्रासे पार्टी सहित वापिसी पर लिखा कि-'श्री बाहुबलि जिन पूजाको नित्य हम लोग करते थे, उसमें मुझे सबसे अधिक भानन्द " मिलता था। सौ प्रतियाँ इस पूजाकी हम लोगोंने मथुरा और महावीरजीमें बांट दी थीं । श्रीमहावीरजीकी पूजा.... आपकी कब पूरी होगी इसकी मुझे बहुत प्रतीक्षा है। प्रथम अंश उसका बहुत उत्तम लगा।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527320
Book TitleAnekant 1953 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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