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________________ ॐ अहम पितरव-सपल पोशाक + विश्व तत्त्व-प्रकाशक + वार्षिक मूल्य ५) एक किरण का मूल्य ॥) + 285 ++++ I H HAPA नीतिविरोधध्वंसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः । सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' वर्ष १२ । वीरसेवामन्दिर, १ दरियागंज, देहली अक्तूबर है किरण ५ आश्विन वीरनि० संवत २४७६, वि. संवत २०१० १९५३ श्रीनेमिचन्द्राचार्य-विरचित लघु द्रव्यसंग्रह 'द्रव्यसंग्रह' नामका एक प्राकृत ग्रन्थ जेन समाज में प्रसिद्ध और प्रचलित है. जिसके अनेक अनवाढोंके Tथ कितने ही स्करण एवं प्रकाशन हो चुके हैं। वह 'वृहद् द्रव्यसंग्रह' कहलाता है, क्योंकि उसकी संस्कृत टीकामें काकार ब्रह्मदेवने, यह सूचित किया है कि 'इस द्रव्यसंग्रहके पूर्व ग्रन्थकार श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेवने एक दूसरा लघु व्यसंग्रह सोमवेष्ठिके निमित्त रचा था, जिसकी गाथा संख्या २६ थी; पश्चात् विशेषतत्त्वके परिज्ञानार्थ इस बृहद ग्य संग्रहकी रचना की गई है, जिसकी गाथा संख्या ५८ है।' वह लघु द्रव्यसंग्रह अभी तक उपलब्ध नहीं हो रहा था और इसलिये श्राम तौर पर यह समझा जाता था कि उस लघु द्रव्यसंग्रहमें कुछ गाथाओंकी वृद्धि करके प्राचार्य होदयने उस ही बड़ा रूप दे दिया है- वह अलगसे प्रचारमें नहीं आया है । परन्तु गत वीर-शासन-जयन्तीके सरपर श्री महावीर जीमें, वहाँ के शास्त्रभण्डारका निरीक्षण करते हुए, वह लघु द्रव्यसंग्रह एक संग्रह ग्रन्थमें मिल ॥ है, जिसे अनेकान्त पाठकोंकी जानकारीके लिये यहाँ प्रकाशित किया जाता है। इसकी गाथा-संख्या उक्त संग्रह ये २५ दी हैं और उन गाथाओंको साफ तौर पर 'सोमच्छलेण रइया' पदोंके द्वारा 'सोम' नामके किसी व्यक्तिके मत्त रची गई सूचित किया है। साश ही रचयिताका नाम भी अन्तिम गाथामें 'नेमिचन्द्रगणी' दिया है। हो सकता है गाथा इस ग्रन्थप्रतिमें छूट गई हो और वह संभवतः १० वी ११र्वी गाथाओंके मध्यकी वह गाथा जान पड़ती है बृहद् द्रव्यसंग्रहमें 'धम्माऽधम्मा कालो' इत्यादिरूपसे २०२० पर दी हुई है और जिसमें लोकाकाश तथा अलोकाका स्वरूप वणित है। क्योंकि धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्योंकी लक्षणपरक तीम गाथाएं नं०८, १,१. और -लक्षण-प्रतिपादिका गाथा नं. ११ का पूर्वार्ध, जो व्यवहारकालसे सम्बन्ध रखता है, इस लघु द्रव्यसंग्रहमें वे ही जो कि बृहद् द्रव्यसंग्रह में नं० १७, १८, १६ तथा २१ (पूर्वार्ध) पर पाई जाती हैं। इनके अतिरिक्त १२ वीं और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527319
Book TitleAnekant 1953 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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