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वीरसेवामन्दिरका त्रयोदशवर्षीय महोत्सव
निमन्त्रण-पत्र
प्रिय बन्धुवर,
सस्नेह जयजिनेन्द्र। बहुत अर्सेसे वीरसेवामन्दिरका एक अधिवेशन अथवा उत्सव करनेका विनार चला जाता है परन्तु अनुसंधानात्मक साहित्यिक प्रवृत्तियोंमें लगातार संलग्न रहने आदिके कारण मुझे उसके अनुकूल अवसर नहीं मिलसका अथवा यों कहिये कि काल-लब्धिकी प्राप्ति न हो सकी, और इसलिये विचार बराबर टलता ही रहा। हालमें यह देखकर कि भारतके एक महान सन्त उदारमना तुल्लक श्रीगणेशप्रसादजी वर्णी (न्यायाचार्य) राष्ट्रकी आध्यात्मिक विभूतिके रूपमें लोकहितकी भावनाओंको आत्मसात् किये हुए वर्षोंसे पैदल चलते और अपने सदुपदेश एवं पवित्रात्माके प्रभावसे लोकमें स्व-परकल्याणकी भावनाओंको जागृत करते हुए इधर आ रहे हैं और वीरसेवामन्दिरको भी देखना चाहते हैं. अतः इस शुभ अवसरपर मन्दिरका त्रयोदशवर्षीय महोत्सव कर लेना समुचित समझा गया । यद्यपि त्रयोदशवर्षीय महोत्सव-जैसे कार्यके लिये समय बहुत ही कम है और इस अल्प समयमें उसे वह रूप नहीं दिया जा सकेगा जिसे में देना चाहता था, फिर भी इस शुभ संयोगपर मैं वीरसेवामन्दिर' संस्थाको जो अभी तक मेरी ही संस्था समझी जाती रही है- भले ही मेरा आत्मा उसे अपनी न समझता हो, समाजके पवित्र हाथोंमें सौंप देना चाहता हूँ. जिससे मुझे भारमुक्त होकर अपने अन्तिम ध्येय अथवा चरम लक्ष्यकी ओर अग्रसर होनेका कुछ अवसर मिल सके और संस्था भी खूब फल-फूलै; इस दृष्टिसे यह उत्सव मेरे लिये एक महोत्सवके ही रूपमें होगा और संस्थाके प्रेमी अपनी उपस्थिति और सहयोग - द्वारा उसे सचमुचमें महोत्सव बना देंगे ऐसी दृढ आशा है।
पूज्य वर्णाजी अपने संघ-सहित, जिसमें अनेक क्षुल्लक साधु और त्यागी जन शामिल हैं, वैशाख वदि एकमे का फूलको वीरसेवामन्दिरमें पधारेंगे और महोत्सवकी तिथियाँ पन्चमी, छठे तारीख २४.२४ अप्रैल सन् १९४६ दिन रविवार तथा सोमवारकी स्थिर की गई है । अतः आपसे सानुरोध निवेदन है कि आप इस सत्समागम पर अवश्य ही वीरसेवामन्दिरमें पधारनेकी कृपा करें। इससे आप सन्तदर्शन, वर्णीजीके उपदेशामृतका पान और विद्वानोंके सारभाषणोंका श्रवण करनेके साथ साथ वीरसेवामन्दिरकी प्रवृत्तियोंका साक्षात् परिचय भी प्राप्त कर सकेंगे और अपनी इस पाली - पोगी संस्थाके उज्ज्वल भविष्यका विचार करते हुए उसे समुन्नत और सुव्यवस्थित बनानेके सत्कार्यमें अपना सक्रिय सहयोग भी प्रदान कर सकेंगे।
सरसावा, जिला सहारनपुर ।
३१ मार्च १९४६
निवेदक जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर'
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